जहाँ एक तरफ़ बॉलीवुड की रंगीन दुनिया के पीछे छुपे काले ड्रग्स का राज़ लोगो के सामने आया वही दूसरी तरफ लोग अपने मोहहले और गलियों में इस्तेमाल हो रही मारिजुआना से अंजान दिख रहे है ।। चाहे पटना के दियर (गंगा की बालुई भूमि ) का इलाका हो या बनारस का पवित्र घाट का, मुम्बई का जुहू हो या दिल्ली का कोई छात्रावास ,गाँजे या उसका अंग्रेजी नाम मारिजुआना का इस्तेमाल हर जगह चोरी छुपे धरले से हो रहा है ।
किसी आम पत्तो जैसी दिखने वाली यह ड्रग युवाओं को बड़ी आसानी से मिल जाती है, पुलिस प्रसाशन के नाक के निचे से लोग इसे जम कर बेच व ख़रीद रहे है ,3 ,4 घण्टे तक युवाओं को मदहोश रखने वाला यह ड्रग पार्टीज़ में शराब से ज्यादा पसंद किया जाता है ।
इस ड्रग को लीगल करने की माँग का मुद्दा हमेसा से ही जोरों पर है । ख़ास कर छोटे शहरों से महानगरों में पढ़ने आये बच्चे इस ड्रग के आदि हो जाते है , खुद को दूसरों के बराबर खड़ा रखने की चाह में बच्चे खुद को गिरोह से बचा नही पाते और ग़लत लोगो का शिकार हो जाते है।
भारत में इन नशीले ड्रग्स का दुरुपयोग पिछले कुछ दशकों में देश के बच्चों और युवाओं को प्रभावित करने वाली सबसे गंभीर समस्याओं में से एक बन गई है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली के नेशनल ड्रग डिपेंडेंस ट्रीटमेंट सेंटर ने फरवरी 2019, की अपनी रिपोर्ट “सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा प्रायोजित” भारत में पदार्थ के उपयोग का परिमाण प्रस्तुत किया।
