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मुनिश्री सुधा सागर जी महाराज ने बताया कि कब मनेगा भगवान महावीर स्वामी का निर्वाण कल्याणक

समाज में पिछले कुछ दिनो से दीपावली पर्व को लेकर असमंजस बना हुआ था की दीपवाली कब मनायी जाए? और कब भगवान महावीर स्वामी जी का निर्वाण दिवस मनाया जाए।

संत आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज के परम शिष्य मुनि श्री 108 सुधा सागर जी महाराज ने समाज में चल रहे असमंजस का समापन कर दिया है। जैन धर्म के अनुसार दीपवाली महापर्व, भगवान महावीर का निर्वाण लाडु और महापूजन का आयोजन 14 नवम्बर को नहीं 15 नवम्बर को होगा।

इस शंका का समाधान मुनि श्री सुधा सागर जी महाराज ने किया है। मुनिश्री के बाल ब्रह्मचारी महावीर भैया जी ने बताया की राजस्थान में स्थित बिजोलिया पारसनाथ जी तीर्थ क्षेत्र में चातुर्मास कर रहे आचार्यश्री के परम शिष्य निर्यापक मुनिपुंगव सुधासागर जी महाराज ने दीपावली महापर्व के उपलक्ष्य में आनलाइन प्रवचन में कहा की 15 नवम्बर को सुबह भगवान महावीर स्वामी जी का मोक्ष कल्याणक पर्व मनाया जाएगा, कारण की 14 नवम्बर को दोपहर में 2 बजकर 17 मिनट के बाद अमावस्या लगेगी, जो की 15 नवम्बर को सुबह 10 बजकर 36 मिनिट तक रहेगी। जैन धर्म के अनुसार भगवान महावीर का मोक्ष अमावस्या के अंतिम पहर के समय हुआ था। इसलिए 14 को मोक्ष कल्याणक नहीं मनाया जाएगा।

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15 नवंबर कार्तिक सुदी अमावस्या को सुबह मोक्ष कल्याणक पर्व मनेगा। इस अवसर पर मंदिर जी में निर्वाण लाड्डु चढ़ाए जायेंगे। इसके बाद फिर शाम को गोतम गणधर की केवलज्ञान की महापूजन होगी।आपने आगे बताया कि शास्त्र में जैन धर्म के अनुसार महावीर स्वामी को मोक्ष कार्तिक कृष्णा अमावस्या के अंत मे सुबह के समय हुआ था और उस दिन सभी जैन धर्मावलंबी आदि महावीर स्वामी का मोक्ष कल्याणक को निर्वाण लाडू चढ़ाते हैं।

 

तीर्थंकर पदवी से विभूषित महावीर स्वामी मोक्ष गमन कर गए इसीलिए दिन भर अपने घर में यह घी के दीपक जलाते हैं क्योंकि घी के दीपक घर में मांगलिक माने जाते हैं और घी के दीपक जलाने से आशय यह है कि भगवान को केवल ज्ञान रूपी ज्योति प्राप्त हुई ऐसे ही हमको भी केवल ज्ञान व मोक्ष रूपी ज्योति प्रकट हो।जब महावीर भगवान को पावापुरी से मोक्ष हुआ और गौतम गणधर को शाम को गोधूलि बेला के समय बिहार मे नवादा से केवल ज्ञान प्राप्त हुआ था। इसलिए फिर गोतम गणधर के केवल ज्ञान प्राप्ति के पश्चात पूजा का महत्व रहता है। पूजा में गौतम गणधर की पुजा,देव शास्त्र गुरु का अर्घ, 64 रिद्धि-सिद्धि मंत्रों के अर्घ आदि संलग्न किया जाता है।

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