भक्त-भगवान के बीच कोई नहीं आना चाहिए जब भी दरबार में जाओ तो निस्वार्थ भाव से ही मुनि श्री
गुना, मध्य प्रदेश। देव, शास्त्र और गुरु के समक्ष किया गया पाप ब्रजलेप के समान हैं। दुनिया में कहीं भी किए गए पाप का प्रायश्चित तो भगवान और गुरु के सामने हो जाएगा। लेकिन इनके समक्ष ही पाप करोगे तो आखिर जाओगे कहां। आज लोग मंदिरों में राग-द्वेष के कारण झगड़ा कर रहे हैं। जिन मंदिरों में पापों को नष्ट किया जाता है उस मंदिर में हम मान कषाय के वशीभूत होकर लड़ाई- झगडा करते हंै। मंदिरों में ही हम यह सब करेंगे तो आपको कही शांति नहीं मिलेगी। शान्ति की जगह को शान्ति की जगह ही रहने दो। मंदिर में जाओ तो यह भावना लेकर जाओ कि हे भगवान आपके अंदर जो गुण है उनकी प्राप्ति के लिए मैं यहां आया हूॅ। मेरा अंतिम समय भगवान का नाम लेकर निकले। मन में राग और द्वेष की भावना लेकर मंदिर नहीं जाना चाहिए।
धर्मसभा में मुनि श्री पद्म सागर जी महाराज ने कहा कि आज इंसान कहता है कि मैं रोज भगवान की भक्ति पूजा करता हूं, लेकिन फल क्यों नहीं मिलता। जब तुमने पाप किए थे उसका भी तुरंत फल नहीं मिला था। इसलिए घबराओ नहीं भगवान की भक्ति करते रहो और पुरूषार्थ करो, फल जरूर मिलेगा। मुनिश्री ने कहा कि भगवान के दरबार में जाओ तो निस्वार्थ होकर जाएं। संसार के कार्य, संकल्प, विकल्प यदि मन में हैं तो उन्हें मंदिर के दरवाजे पर ही छोड़कर जाएं। भगवान और भक्त के बीच कोई नहीं आना चाहिए। आपकी मनोभावना जरूर पूर्ण होगी।
मंदिर और मूर्तियां धर्म नहीं है यह तो धर्म के साधन है प्रसाद सागर जी
इस अवसर पर मुनि श्री प्रसाद सागर जी महाराज ने कहा कि मंदिर और मूर्तियां धर्म नहीं है यह तो धर्म के साधन है लेकिन हमनें इन्ही को धर्म मान लिया। इसी तरह शरीर तो सहायक है परम वैभव तो आत्मा है। मुनिश्री ने कहा कि जिन्हें स्वप्न देखना अच्छा लगता है उन्हें रातें छोटी लगती हैं और जिन्हें स्वप्न पूरा करना है उन्हें दिन छोटे लगते हैं।