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Supreme Court- Babri Masjid/ सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले का पूरा ट्रायल 31 अगस्त तक करने को कहा

आज सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में 1992 बाबरी मस्जिद विवादित ढांचा गिराये जाने की घटना से संबंधित मुकदमे की सुनवाई पूरी करने के लिये शुक्रवार को विशेष अदालत का कार्यकाल तीन महीने बढ़ा दिया। बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले का ट्रायल अगस्त तक पूरा करने की डेडलाइन सुप्रीम कोर्ट ने तय की है।

सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी विध्वंस मामले की सुनवाई करने वाले स्पेशल जज एसके यादव से कहा है कि वह 31 अगस्त तक मामले का ट्रायल पूरा करें। पहले स्पेशल जज को 30 अप्रैल तक ट्रायल पूरा करने को कहा था। इस मामले में बीजेपी नेता एलके लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी सहित कई नेताओं के खिलाफ ट्रायल चल रहा है। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस रोहिंटन नरीमन की अगुवाई वाली बेंच ने स्पेशल जज से कहा कि वह विडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये बयान दर्ज करा सकते हैं और ये सुनिश्चित करने को कहा है कि सुनवाई अगस्त 31 तक पूरी हो जाए।

स्पेशल जज ने लेटर लिखकर सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई थी कि ट्रायल पूरा करने के लिए समयसीमा बढाई जानी चाहिए। तब सुप्रीम कोर्ट ने चार महीने के लिए अवधि बढ़ा दी है और कोर्ट ने कहा है कि कोशिश होनी चाहिए कि 31 अगस्त तक सुनवाई पूरी हो जाए। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 19 जुलाई को आदेश दिया था कि छह महीने में बयान दर्ज होना चाहिए। हालांकि अभी तक बयान दर्ज नहीं हुआ  है। सुप्रीम कोर्ट ने बयान विडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये दर्ज करने को कहा है । सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में 19 अप्रैल 2017 को कहा था कि विशेष जज दो साल के भीतर मामले की सुनवाई पूरी करें और जज का ट्रांसफर न किया जाए।

क्या है पूरा मामला
सन 1992 के  6 दिसंबर को बाबरी मस्जिद का ढांचा गिरा दिया था। उस समय उत्तर प्रदेश मे  मुख्यमंत्री कल्याण सिंह जी थे। जानकारी के अनुसार, बाबरी मस्जिद गिराए जाने से पहले उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में हलफ़नामा दिया था कि बाबरी मस्जिद को नुक़सान नहीं पहुंचने दिया जाएगा लेकिन वो इसे निभा नहीं पाए थे।

इन पर है आरोप
इस मामले में लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और साध्वी उमा भारती के साथ ही राजस्थान के पूर्व राज्यपाल कल्याण सिंह, पूर्व सांसद विनय कटियर और साध्वी ऋतंबरा के खिलाफ बाबरी मस्जिद ढांचा गिराने की साजिश में शामिल होने के आरोप उच्चतम न्यायालय ने 19 अप्रैल, 2017 के आदेश में बहाल कर दिया। इस मामले के आरोपियों में से विश्व हिन्दू परिषद  के अशोक  सिंघल, विष्णु हरि डालमिया की मुकदमे की सुनवाई के दौरान मृत्यु हो जाने की वजह से उनके खिलाफ कार्यवाही खत्म कर दी गई।


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