निर्यापक श्रमण मुनिपुंगव प्राचीन तीर्थ जीर्णोधारक 108श्री सुधासागर जी महाराज ने प्रवचन मे कहा है की जहर को भी सकारात्मक बना लो हर वस्तु को सकारात्मक बना लो कोई ना कोई की अपेक्षा, जो दुखों से संकटों से पलायन करके के भागता हैं, वो धर्म से भी भांगगे इसलिए पुण्य को ठुकराकर आओ, पुण्य से वेराग्य लाओ तो धर्म में मन लगेगा।
पाप के आश्रम में दो पुरुषार्थ दिये अर्थ व काम पुरषार्थ है इनसे पाप का आश्रव ही होता है,जब जब तुम्हारे मन में कमाने का भाव चल रहा है तब तब पाप का आश्रव ही होगा,कमाने का भाव का चाहे तुम धर्म राष्ट्र परिवार के लिए कमाने की सोच रहे हो तो आप का आश्रव ही होता है,पुरुष और महिलाएं दोनों के कमाने का भाव होता है तो पाप.का आश्रव ही होता हैं,स्त्री पर्याय मे कमाने का भाव नहीं करना पड़ता,तो भी स्त्री अर्थ के बारे में सोच कर मन से व्यापार कर के पाप कमाती हैं स्त्री बड़े पाप अर्थ पुरषार्थ से बच सकती है।
प्रत्येक दर्शनकार ने एक अदृश्य की कल्पना की है अदृश्य को एक नाम दिया है यह है पुण्य और पाप,इनका कर्मों का फल देखने में आता है जैन धर्म में तीसरी खोज धर्म है उसका फल मोक्ष दिया।
कौन ऐसा किसान है जिसके पास बीज है ,खेत है पानी है सब कुछ है फिर भी वह अपने खेत को खाली छोड़ दे।उसी प्रकार कोई भी श्रावक ऐसा नही है जो मुनि महाराज के सामने होते हुए चौका, मुनि का विहार न करवाए। अविरत सम्यग्दृष्टि देव शास्त्र गुरु णमोकार मंत्र को मानता है,अटूट श्रद्धा रखता है,लेकिन वह त्याग नही करता ।
आज की शिक्षा-स्त्री पर्याय में कमाने का भाव से बचकर पाप से बच सकती हैं।
संकलन- ब्र महावीर