संत शिरोमणी आचार्य श्री १०८ विद्या सागर जी महाराज ने बुधवार को श्री पारसनाथ दिगम्बर जैन मंदिर विजय नगर में प्रवचन दिए। धनतेरस 13 नवम्बर को आचार्य श्री के सानिध्य में स्वर्णभद्र पाषाण के मंदिर का शिलान्यास समारोह आयोजित होगा। शहर के लिए ये बड़ी सोगात होगी।
समाज के अध्यक्ष धर्मेंद्र जैन सिनकेम ने बताया कि शुरुआत में माँगलिक क्रिया ब्रह्मचारी सुनिल भैया जी ने कराई। इस अवसर पर समाज के प्रमुख लोगों द्वारा श्रीफल अर्पित किया गया। समाज के अध्यक्ष धर्मेंद्र जैन सिनकेम और ट्रस्ट के सुगम जैन और प्रदीप शास्त्री ने बताया की 35 बाय 100 वर्गफ़िट की ज़मीन पर उक्त मंदिर बनेगा। यह मंदिर ३ मंज़िला रहेगा। शिलान्यास समारोह में प्रतिष्ठाचार्य ब्रह्मचारी विनय भैया द्वारा माँगलिक क्रिया की जाएगी। शिलान्यास समारोह का यह आयोजन दोपहर १.१३ बजे से शुरू होगा।
मंदिर के शिलान्यास के बारे में आचार्य श्री ने प्रवचन में कहा
आज आचार्य श्री ने प्रवचन में कहा की मंदिर के शिलान्यास के बारे में आपने अपना निर्णय अपने भाव समाज के सामने रखा है। अभी भी सोच लो क्योंकि 1 बार आप उसके प्रथम चरण स्वीकार करते है तो वह चरण मंगलाचरण के रूप में आगे बढ़ते चले जाता है। ओर सब तालिया बजाते है लेकिन अगर नही हुआ ऐसा तो जोर से तालिया बजाएंगे। इसका अर्थ यह है कि आपको निरंतर चलना है कि लौटना नही है, रुकना नही है और भागना भी नही है ओर ज्यादा अति विश्वासी भी नही होना है। कमेटी में 1 प्रसंग बनाए रखे। क्योंकि कमेटी जब बनती है तो लाओ-लाओ धन तो कहते है लेकिन फिर बाद में जब पूछते है तो उस राशि का पता नही होता। इसलिए समाज को, कार्यकर्ताओ को उत्साह बढ़े और आपके धन का सदुपयोग हो, क्योंकि बहुत बड़ा काम है और उन्होंने अपने हाथों में लिया है। जब भार कंधो पर रहता है लेकिन हाथो में कर्तव्य रहता है, यह दोनों काम बहुत महत्वपूर्ण है, जिनके कंधे मजबूत होते है वो ही यह भार उठा पाते है। जो व्यक्ति मजबूत होता है वो व्यक्ति ही इसे पूरा करने का प्रयास ही नही संकल्प लेता है। प्रतिष्ठित व्यक्तियों का कर्तव्य है कि वे आगे रहे और कोई पीछे रह न जाए तो सबको भी आगे बढ़ाए ओर सभी का उत्साह बढ़ाए।
विजय नगर कह तो रहे है लेकिन ये सारे नगर इंदौर के उपनगर के अंतर्गत आते है। इसका अर्थ है कि ऐसा नही की सिर्फ विजय नगर वाले ही आगे बढ़ेंगे क्योंकि भगवान तो सबके है ओर विभाजित नही किया जा सकता है। इनका या उनका मंदिर ऐसा नही होता है। मंदिर सबका हो जाता है और भक्तों का होता है। भक्त यहां पर तभी आएंगे जब सब अच्छे से होगा। और यह भी अच्छा है कि लोग मोहरत ढूंढते है लेकिन यहां मोहरत कह रहा है कि मैं आ रहा हूँ। आज यह ग्यारस की तिथि है और परसो कई तरह के मोहरत है। अभी विजयादशमी निकल गई है वो भी मोहरत हमेशा धार्मिक योग से बहुत महत्वपूर्ण है। हमेशा विजयी लौकिक होती है। परसो जो मोहरत है उसको पाने के बाद दुनिया के धन की अपेक्षा नही रहती ऐसे धनतेरस के दिन शुभ कार्य का शुभ मोहरत के साथ शुभ भाव के साथ होने जा रहा है, ओर हम भी कोशिश करेंगे कि हम भी भागीदार बन जाए।