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पहला नवरात्र, मां शैलपुत्री की पूजाविधि, मंत्र, भोग और मान्‍यताएं, जानिए मां शैलपुत्री की पूजा से जुड़ी खास बातें

आज से नवरात्र के महापर्व का शुभारंभ हो गया है। नवरात्र का आज पहला दिन है जो कि मां शैलपुत्री को समर्पित होता है। आज नवरात्र के पहले दिन घटस्‍थापना की जाती है और मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण मां को शैलपुत्री कहा जाता है। मां का यह स्‍वरूप बेहद शांत, सौम्‍य और प्रभावशाली है। आइए जानते हैं मां शैलपुत्री की पूजा से जुड़ी खास बाते
मां शैलपुत्री के स्वरूप की बात करें तो मां के माथे पर अर्ध चंद्र स्थापित है दाहिने हाथ में त्रिशूल है और बाएं हाथ में कमल का फूल है। नंदी बैल को उनकी सवारी माना जाता है। इसलिए मां का एक नाम वृषारूढ़ा भी है। यह कहा जाता है कि देव सती ने जब पुर्नजन्‍म लिया तो वह पर्वतराज हिमालय के घर में जन्‍मी और वें शैलपुत्री कहलाईं। मान्यता है कि नवरात्रि में पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा करने से व्यक्ति को चंद्र दोष से मुक्ति मिल जाती है।
षोड्शोपचार विधि से की जाती है मां दुर्गा पूजा। सभी नदियों, तीर्थों और दिशाओं का आह्वान किया जाता है मां शैलपुत्री की पूजा में। पहले दिन से आखिरी के नवें दिन तक रोजाना घर में कपूर जलाना चाहिए। यह करने से आपके घर की नकारात्‍मक ऊर्जा का नाश होता है।
मां शैलपुत्री का मंत्र इस प्रकार है…
या देवी सर्वभूतेषु शैलपुत्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नम:।
    • ऊँ शं शैलपुत्री देव्यै: नम:
    • वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्। वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
    • या देवी सर्वभूतेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
    • वन्दे वांछित लाभाय चन्द्राद्र्वकृतशेखराम्। वृषारूढ़ा शूलधरां यशस्विनीम्॥
कन्या भोज 
अगर आप या आपके घर में कोई 9 दिन नवरात्र के व्रत रखता है तो उसे रोजाना कम से कम एक कन्‍या को भोजन जरूर करवाना चाहिए। वैसे तो नवरात्र को पहले दिन एक, दूसरे दिन दो और फिर तीसरे दिन दोगुनी कन्‍याओं को खिलाने का विधान है। लेकिन ऐसा संभव न हो तो कम से कम एक कन्‍या को तो भोजन जरूर करवाना चाहिए।

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