अब ‘विश्व योग दिवस पूरी दुनिया में एक सालाना उत्सव बन गया है, जो कि योग की बढ़ती लोकप्रियता का ही प्रमाण है। इस दिन के करीब आते ही राजनेताओं से लेकर अन्य क्षेत्रों की मशहूर शख्सियतों और आमजन में भी योगासनों में हासिल अपनी क्षमता का प्रदर्शन करने की होड़ लग जाती है। वैश्विक स्तर पर योगासनों के बारे में जागरूकता वैसे तो व्यापक रूप से फैल रही थी, लेकिन वर्तमान भाजपा सरकार के सत्ता में आने के बाद इसमें काफी तेजी आई है। कारण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का इस प्राचीन भारतीय योग पद्धति में निजी रुचि लेना रहा है।

तंदुरुस्ती को मोदी जी कितना महत्व देते हैं, इसका उदाहरण है कि वर्ष 2014 में सत्ता में आने के बाद मोदी सरकार ने योगासनों की वैश्विक पहचान को औपचारिक मान्यता दिलाने की मुहिम छेड़ी। नतीजतन, उसी वर्ष संयुक्त राष्ट्र ने हर वर्ष 2। जून को विश्व योग दिवस के रूप में मनाने का संकल्प पारित किया। संयुक्त राष्ट्र ने अपनी वेबसाइट पर लिखा है कि योग भारत में उत्पन्न एक प्राचीन शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक क्रिया है। योग संस्कृत का शब्द है, जिसका अर्थ मिलन होता है। दरअसल, योग दर्शन शरीर और चेतना (आत्मा) को एकबद्ध करने की क्रिया है। जब ऐसी एकता होती है, तो मनुष्य को परम शांति की प्राप्ति होती है। इसी बात पर जोर डालने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने इस बार अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की विषयवस्तु (थीम) रखी है- मानवता के लिए योग बहरहाल, इस मौके पर इस तरफ अवश्य जोर दिया जाना चाहिए कि अभी दुनिया में जो लोकप्रिय हुआ है, वह योग का सिर्फ एक हिस्सा यानी आसन है। जबकि योग अशंग दर्शन है। यानी इसके आठ हिस्से हैं- यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि। इनमें आसन शारीरिक स्वास्थ्य के लिए हैं। योग दर्शन के अनुसार, शरीर ही आत्मा का मंदिर है। अतः आत्मिक विकास के लिए शरीर का स्वस्थ रहना आवश्यक है। हमें इस बात पर जरूर जोर देना चाहिए कि योगासनों को अपनाने के बाद हम योग के दूसरे पहलुओं को अपने जीवन में स्थान देने की तरफ बढें। दरअसल, यम और नियम जिस अनुशासन और जीवन-शैली की शिक्षा देते हैं, उन्हें अपनाए बगैर शारीरिक स्वास्थ्य को भी संपूर्ण रूप से प्राप्त नहीं किया जा सकता।
वैसे स्वस्थ रहने के लिए उचित भोजन और स्वच्छ वातावरण भी जरूरी है। मौजूदा सरकार ने स्वच्छता पर खासा ध्यान दिया है। इसके बावजूद देश में बिगड़ता पर्यावरण तथा आबादी के एक बड़े हिस्से का पौष्टिक भोजन से वंचित रहना एक बड़ी समस्या है। सरकार को इन मोर्चों पर परिस्थिति को सुधारने को एक चुनौती के रूप लेना चाहिए। वरना, योग की तमाम लोकप्रियता के बावजूद हम स्वस्थ और खुशहाल भारत बनाने का सपना साकार नहीं कर पाएंगे। यह ऐसी क्रिया है जिसके लिए घंटे दो घंटे का समय हमें हर दिन निकालना होगा तभी इसका लाभ मिलेगा। 21 जून तो दुनिया को याद दिलाने के लिए है। एक पर्व के रूप में इसे मान्यता देने के लिए यह तारीख नियत की गई, लेकिन यदि हम हर दिन स्वस्थ व मन को स्थिर रखकर काम करना चाहते हैं तो इसे हर रोज करना होगा। दूसरी बात यह है कि इसे राजनीति से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए। योग किसी विशेष धर्म व जाति के लिए नहीं है। समाज के हर वर्ग के लिए इसकी उपयोगिता है। किसी शब्द के कहने से धर्म बदल जाता हो या उसकी जाति बदल जाती हो, ऐसा नहीं है। बल्कि उस शब्द के अपने मायने है, उसकी वैज्ञानिक व तार्किक मान्यता है। योग को देश, धर्म और राजनीतिक सीमाओं से परे एक ऐसे ज्ञान के रूप में देखा जाना चाहिए जो हमें नियमित-संयमित जीवन जीने की प्रेरणा देता है। शरीर को चुस्त-दुरुस्त रखने के अलावा सकारात्मक सोच देता है।प्राणायाम के जरिये व्यक्ति सामान्य सांस की अपेक्षा कई गुना आक्सीजन लेता है, जिससे शरीर से कार्बन डाइऑक्साइड व अन्य दूषित पदार्थ बाहर निकलने से कोशिका-तंत्र मजबूत होता है।
सारिका जैन ,प्रवक्ता (दिल्ली प्रदेश) भारतीय जनता पार्टी