केन नदी मध्य प्रदेश स्थित कैमूर की पहाड़ी से निकलती है और 427 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद उत्तर प्रदेश के बांदा में यमुना में मिल जाती है। वहीं बेतवा मध्य प्रदेश के रायसेन जिले से निकलती है और 576 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद उत्तर प्रदेश के हमीरपुर में यमुना में मिल जाती।
हर सिक्के के दो पहलु होते हैं ।इसी प्रकार हर बात के दो पक्ष होते हैं लाभ और हानि ।आजकल हमने विकास के नाम पर इतने अवैज्ञानिक योजनाओं को स्वीकार कर लिया हैं की उससे होने वाले लाभ हानि भविष्य के लिए कितने कष्टदायक होंगे । वैसे नदियों का जोड़ना अवैज्ञानिक हैं ।हर नदी के जल का अपना निजी स्वरुप होता हैं उसकी प्रकृति अलग होती हैं ।वैसे जल या पानी की संरचना हाइड्रोजन और ऑक्सीजन से होती हैं और उसकी गुणवत्ता का स्थान अलग होता हैं और जब एक दूसरे को जोड़ाजाता हैं तब दोनों का जल डिनेचर्ड हो जाता हैं और वे अपनी स्वाभिवकता त्याग देते हैं ।
सबसे पहले इस परियोजना से पन्ना नेशनल पार्क के जीवों पर कितना घातक प्रभाव पड़ेगा। इस परियोजन की लागत 18000 करोड़ के लगभग होंगी वर्तमान में और कार्यान्वन के समय तक डेढ़ गुना होना निश्चित ।इसके लिए 9000 हेक्टेयर भूमि का अधिग्रहण करना होगा जिसमे लगभग 5017 हेक्टेयर भूमि पन्ना नेशनल पार्क की होगी । जिसके लिए सरकार को अरबों रूपए की जरुरत पड़ेंगी और जंगलों का नुक्सान अकल्पनीय होगा। इसके अलावा अनेकों गॉंव को खाली कराकर उनका पुर्नस्थापन करना होगा जिसके लिए करोड़ों रुपयों की जरुरत होंगी।
नौरादेही ,दुर्गावती (दमोह ) और रानीपुर (उत्तर प्रदेश ) ऐसे तीन राष्ट्रीय पार्क प्रभावित होंगे तथा उनके बफर जोन के लिए अरबों रूपए खरच करना होंगे।और हज़ारों हैक्टर ज़मीन को लेकर घने जंगल बनाये जायेंगे। दोनों नदियों को जोड़ने में 221 किलोमीटर की लम्बाई होंगी तथा एक बांध दौधन खजराहोः के पास बनाया जायेगा । जिनसे दो पावर प्रोजेक्ट बनेंगे और प्रत्येक से ७८ मेगावाट बिजली का उत्पादन होगा । यहाँ का पानी बरुआसागर झील में और बेतवा में आएंगे।
इस परियोजना से 3 ,69 ,881 हेक्टेयर भूमि छतरपुर ,टीकमगढ़ पन्ना जिलों की और 2,65,780 हैक्टर महोबा, बांदा और झाँसी जिलों की भूमि को सिंचित किया जाएंगे। इससे 13.42 लाख आबादी को लाभ होगा। तथा हजारों घरों का विस्थापन होने से आबादी प्रभावित होगी तथा अनेक वनस्पतियां, जीव जंतु की प्रजातियां जैसे गिद्ध आदि समाप्त हो जाएँगी।
उपरोक्त वर्णन से यह ज्ञात होता हैं की सरकार इस परियोजना के माध्यम से कितना लाभ देंगी और कितना विनाश होगा । जहाँ वह सिचाई का साधन बन रही हैं उसके समान्तर वहाँ के निवासियों का विस्थापन होने से होने वाली परेशानियां और अनेक प्राकृतिक संसाधनों का नुक्सान, और अनेकों जीवों ,बनस्पतियों का नुक्सान होगा।
सबसे प्रमुख बात यह हैं की जब दो नदियों का पानी मिलेंगे तब तब प्रत्येक पानी की गुणवत्ता समाप्त हो जाएँगी और विकाश के नाम पर होने वाले विनाश का कोई मूल्य सरकार के पास नहीं हैं, सरकार विस्थापन के नाम पर बन्दर बाँट कर असंतोष को जन्म देंगी और आंदोलन होंगे और हजारों लोगों की बलि चढ़ेंगी और अरबों रुपयों का खेल होगा।
इस बात पर ध्यान जरूर रखे की जनता के लिए और उनके हितों का ध्यान रखकर काम करे तो उचित होगा ।अन्यथा विनाश अधिक होना, अर्थ का नुक्सान, जनता में असंतोष और पर्यावरण को नुक्सान कर ऐसी परियोजना लाना उचित नहीं होगा, इसके साथ जंगल में से अनेक प्रजातियां लुप्त होगी और अनेक पशुपक्षी मरेंगे। हम उन योजनाओं को प्राथमिकता देनी चाहिए जो अहिंसात्मक हों। इसी प्रकार नर्मदा क्षिप्रा का जोड़ना भी घातक होगा। पता नहीं वैज्ञानिक और राजनेता अपने आर्थिक लाभ के लिए प्रकर्ति को नष्ट करने में आतुर होते हैं। इसमें विवेक का ध्यान रखना चाहिए।