यदि हम जागरूक हैं तो हमें जिम्मेदार भी बनना है। अगर हम परिवार समाज और देश में शांति और समृद्धि की आकांक्षा रखते हैं तो हमें पहले अपने कर्तव्य को समझना होगा और उसका पालन करना होगा। अधिकार तो हमें स्वयं मिल जाएंगे। कर्तव्य का पालन करें तो अधिकारों को खोजने की जरूरत नहीं पड़ेगी। […]
Author: Dr. Nirmal Jain Jain (ret. Judge)
रिश्ते, रिसते घाव न बन जायें -डॉ निर्मल जैन से.नि. न्यायाधीश
जीवन का सिलसिला बचपन के विशाल मैदान में खेलते-कूदते शिक्षण के दायरे से गुजरता हुआ जब ऐसे मोड़ पर आ ठहरता है कि मन अकेलेपन की रिक्तता भरने के लिए किसी का साथ पाने को आतुर हो उठता है। ऐसे ही मनमीत के साथ जुड़ने पर सामाजिक मोहर का नाम विवाह है। विवाह की नाजुक पतली […]
क्रोध करने का हमें कोई अधिकार नहीं है -डॉ निर्मल जैन
किसी ने गाली दी, अपमान किया, झूठे आरोप लगाए, कटु शब्द सुनाए, हमारी निंदा की, हमारे किसी संपत्ति को हानि पहुंचाई, हमारे साथ शारीरिक बल प्रयोग किया, हमारे धन को हड़प लिया। इस तरह की दूसरे लोगों द्वारा की गई सारी हरकतों को हम क्रोध का निमित्त कहते हैं। लेकिन प्रकृति इस बात से सहमत […]
दिखाओ चाबुक तो झुक कर सलाम करते हैं- हम वो शेर हैं जो सर्कस में काम करते हैं। डॉ. निर्मल जैन (जज)
दिखाओ चाबुक तो झुक कर सलाम करते हैं- हम वो शेर हैं जो सर्कस में काम करते हैं। डॉ. निर्मल जैन (जज)
नए साल की तारीख भले ही विदेशी, लेकिन उत्सव-भाव स्वदेशी
डॉ. निर्मल जैन (जज से.नि.) नव वर्ष दुनिया भर में हर देश, समुदाय, नगर और परिवार के लिए एक विशेष अवसर रहा है। क्योंकि यह एकमात्र ऐसा अवसर है जिसे किसी भी जाति, समुदाय और जातीयता के बावजूद मनाया जाता है। नव वर्ष के स्वागत का तरीका जो भी हो लेकिन मन में भावना एक ही रहती है […]
मतदान दिवस, अवकाश दिवस नहीं, कर्तव्य दिवस
हमारे देश के पाँच हज़ार साल के इतिहास में हम कुल तीन पीढ़ियाँ है जो अपने स्वयं के राजा हैं। अपनी इस स्वतंत्रता की रक्षा हेतु मतदान करना हमारा परम कर्तव्य है। यदि अपने जीवन और अपने अधिकारों के प्रति भी हम उदासीन रहेंगे तो हम किसी और को हमारी दुर्दशा का उत्तरदायी नहीं मान सकते। लोकतंत्र अर्थात जनता […]
सावधान रहिए, चिंतित नहीं -डॉ.निर्मल जैन (जज)
हम उन चीजों से कम बीमार होते हैं जो हम खाते हैं। ज्यादा बीमार उन चीजों से होते हैं जो हमें अन्दर ही अन्दर खाती रहती हैं। कुछ रोग अनुवांशिक या कोई शारीरिक समस्या हो सकते हैं। परन्तु अधिकांश रोग हमारे अपने ही पाले हुए हैं। अपने पाले होने से अभिप्राय है -मूलत: नकारात्मक सोच। […]
व्यर्थ ना जाए नाली में – डॉ निर्मल जैन (न्यायाधीश)
हाल ही में हमने जय-जवान जय-किसान नारा देने वाले भारत के यशस्वी कर्मठ प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री की जन्म-जयंती मनाई। तत्समय अन्न संकट को दूर करने के लिए उन्ही का उद्घोष था – देश हित और स्वास्थ्य हित में सप्ताह में एक समय सभी लोग उपवास रखें। अनाज की बरबादी तो असहनीय है। मैंने किसान के […]
लव जिहाद: न लव, न जिहाद, न साजिश, केवल स्व-निर्मित परिस्थिति -डॉ. निर्मल जैन (जज)
एक लंबी प्रतीक्षा के बाद भी जब कोई सुपरफास्ट, द्रुतगामी एक्सप्रेस ट्रेन आने की आशा धूमिल होने लगती है तब यात्री गंतव्य स्थान पर पहुंचने के लिए सामने जो भी वाहन दिखाई पड़ता है उसी को प्राथमिकता देता है। बिल्कुल यही स्थिति आजकल लव जिहाद की है। आयु के साथ-साथ तन और मन दोनों की […]
अपने मन और कामनाओं पर लॉक-डाउन लगा के देख फिर- डॉ निर्मल जैन (न्यायाधीश)
भविष्य की सुविधाओं को खरीदने के लिए हम अपना वर्तमान बेचने लगे। सूर्योदय से देर रात तक धन और सुविधाएं की तलाश में खर्च करने से घर केवल रैन-बसेरा की तरह हो गया। परिणामतय: परिवार संघर्ष, विवाद, अशान्ति, के चलते टूटने की कगार पर आ पहुंचे। आत्मीय-रिश्ते लाक्षागृह की आग में भस्म होने लगे। सामाजिक […]
देह के हस्तिनापुर में आज भी एक महाभारत सुलग रहा है – डॉ.निर्मल जैन (न्यायाधीश)
शजर अंदर ही अंदर जाफरानी हो गया है। बहुत मुश्किल है शाखों पर पत्तों का हरा रहना। महाभारत धर्म-महायुद्ध की घटायें तो युगों पहले हस्तिनापुर के आकाश में अठारह दिन तक कुरुक्षेत्र पर घिर कर, बरस कर समाप्त हो गयीं। लेकिन हमारी सबकी अपनी देह के हस्तिनापुर में आज भी एक महाभारत सुलग रहा है। “दुराग्रह का […]
महावीर निर्वाण कल्याणक“मैं” से स्वयं में जाना निर्वाण हैं- डॉ. निर्मल जैन (ret. Judge)
“ज्ञान और आलोक का उत्सव –दीपावली जैन विचारधारा के चौबीसवें तीर्थंकर महावीर का निर्वाणोत्सव”। बनने और बिगड़ने, जन्मने और अंत को प्राप्त होने का क्रम अनादि काल से चला आ रहा है, चलता रहेगा। समुद्र की लहर आती है किनारे की रेत पर बनी रेखायें मिटा देती है। ऐसे ही जीवन भी अवतरित होता है […]
बस ! इतना सा ख्वाव है – जनबल मेरे साथ हो झंडा मेरे हाथ हो : डॉ. निर्मल जैन
अपने में कुछ जोड़ने के प्रयास में सब कुछ टूटता जा रहा है। माता-पिता के लिए आदर नहीं रहा। भाई-भाई, बहन-बहन, भाई-बहन के बीच बचपन की आत्मीयता मेरे-तेरे में बदल गयी। वरिष्ठ-जनों के प्रति सम्मान-भाव टूट रहा है। पति-पत्नी के रिश्ते बिखर रहे हैं। समाज जुड़ती तो है मगर सहिष्णुता और सद्भावना विहीन एक छितरी हुई भीड़ […]
बेटी, “बहू-बेटी” स्वयं बने या हम बनायेंगे? डॉ. निर्मल जैन (जज)
पुत्री-दिवस (Daughter’s Day) विभिन्न देशों में अलग-अलग दिनों में मनाया जाता है। भारत में इसे सितंबर के अंतिम रविवार को मनाते हैं। निर्माण और संहार के कितने ही विकल्प और उपकरण पुरुष ने बना लिए और बना ले। लेकिन सृजनात्मक-शक्ति का उपहार प्रकृति ने केवल नारी को ही दिया है। इस सृजनात्मक-शक्ति से विश्व को […]
सोशल मीडिया पर विधटनकारी विवाद के संदर्भ में अकबर बीरबल-प्रसंग- डॉ. निर्मल जैन
एक रात बादशाह अकबर ने सपना देखा कि खेत में गेहूं की बहुत सारी बालियां लगी हैं। एक गाय सारी बालियों को चर जाती है। बस एक को छोड़ देती है। बादशाह सपने का फल जानने को बेचैन हो गए। पंडितों और मौलवियों को बुलवाया। पंडितों और मौलवियों ने तिथियों की गणना की, ग्रहों की […]
मेरी तो बस हथेली ही गीली हुई -डॉ. निर्मल जैन
दशलक्षण पर्व का समापन हो गया। कोरोना-काल में भी अपने परिवार और साथियों के स्वास्थ्य को दाँव पर लगा कर, प्रकट रूप से दस दिन सुबह-शाम मंदिरजी में पूरे समय तक धार्मिक चोला पहने रहा। लेकिन, पर्व बीते अभी कुछ घंटे ही बीते हैं। मैं फिर से जिंदगी के गणित में दो और दो मिलाकर पांच करने […]
अपरिग्रह व्रत, स्वयं को प्रकृति से जोड़े रखने का आश्वासन है -डॉ. निर्मल जैन
पर्युषण पर्व का नवां अंग, उत्तम आकिंचनधर्म। आकिंचन और परिग्रह परस्पर पूरक हैं। अपरिग्रह व्रत है, अकिंचन आत्मा का धर्म है। अकिंचन का तात्पर्य परिग्रह-शून्यता मात्र नहीं है। अपितु परिग्रह-शून्यता के मनोभावों कि सहज स्वीकृति भी है। प्रचिलित अर्थों में अपरिग्रह -पदार्थ पर स्वामित्व, आसक्ति की आकांक्षा और उनका संग्रह न करना है। किन्तु संग्रह […]
क्षमा धारण करते ही बाकी सभी धर्म का स्वत: ही समावेश हो जाता है
दशधर्म पर्व का प्रथम अंग क्षमा। भूल होना मानव स्वभाव है। लेकिन क्षमा करना दिव्यता है, दैवीय गुण है। हिंसा और आतंक की आग से सुलगते मानव को केवल क्षमा की शीतलता से ही राहत मिल सकती है। मात्र क्षमा-भाव रखने से दिन-प्रतिदिन के पारिवारिक झगड़े, पड़ोस के विवाद, रोड-रेज जैसी घटनाओं से बचा जा सकता है। जाति, रंग, छुआछूत […]
अगर “अंतिम मैच” में रन नहीं बटोरे तो नैट-प्रेक्टिस अर्थहीन हो जाती है -डॉ. निर्मल जैन
“पापा! यहॉं की सुबह से शाम तक की भागदौड़ भरी ज़िंदगी में बस घर से निकलते-निकलते भगवान को हाथ जोड़ कर औपचारिकता पूरी करने का ही समय मिल पाता है। पूजा-पाठ न कर पाने का एक अपराध-बोध बना रहता है। यह पीड़ा है अमेरिका की स्थायी निवासी मेरी पुत्री की। पाश्चात्य देशों में घरेलू सेवक […]
सच कहना न तो निंदा है और न ही उससे पाप या नर्क का बंध होता है -डॉ. निर्मल जैन
इन दिनों हम सभी बचाने में लगे हैं। कोई देश बचा रहा है, कोई पर्यावरण। कोई सांस्कृतिक मूल्यों को बचाने मे व्यस्त है तो धर्म परायण लोग धर्म को लेकर बड़ी चिंता में हैं। परोक्ष रूप में मानने लगे हैं कि धर्म अपनी राह से भटक गया है। धर्म को बचाया जाए। अगर ऐसी ही है हमारी सोच […]
जो पाप बांटते समय किसी की नहीं सुनता, “भोगते” समय भी कोई उस की नहीं सुनता -डॉ. निर्मल जैन
विंस्टन चर्चिल एक पागलखाने में व्यवस्था देखने गए। वहां एक पागल कागज पर कुछ लिख रहा था। चर्चिल ने उससे पूछा, ‘क्या लिख रहे हो?’ पागल थोड़ा गुस्से में बोला, ‘अंधे हो? देखते नहीं खत लिख रहा हूं।’ चर्चिल ने फिर पूछा, ‘किसे लिख रहे हो?’ उसने कहा,’अपने आप को लिख रहा हूं।’ ‘क्या लिख […]
जीवन अलभ्य है, जीवन सौभाग्य है उससे पलायन क्यों ? -डॉ. निर्मल जैन
ऐश्वर्यशाली जीवन सुख सुविधाएं, करोड़ों रुपये की संपत्ति, अल्प काल में दौलत-शोहरत और सम्मान से भरपूर। फिर भी एक सफल एवं उदीयमान अभिनेता का जीवन से पलायन। आखिर क्यों? महावीर कह गए हैं –“जीवन कोई मोमबत्ती नहीं जिसे कामनाओं की पूर्ति की आग में जल जाना है। अपितु यह तो एक ऐसी एक ज्योति है जो स्वयं […]
मन का माना मर गया, मन को मारा तर गया – डॉ. निर्मल जैन
बचपन में हमारा मन स्कूल जाने को नहीं किया, करीब-करीब हम सभी लोग पहली बार रो-रो कर ही स्कूल गए। फिर भी मां-बाप ने हमें कठोरता से स्कूल भेजा। तब ऐसा करके क्या वह हमारा अहित चाहते थे। मां-बाप यह सख्ती इसलिए करते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि बच्चा जितना रो-रो कर स्कूल जाता है वहां […]
हम दुख नहीं चाहते लेकिन दुखों को न्योता देने वाले काम खूब करते हैं – डॉ. निर्मल जैन
कपड़ों पर जरा सा भी दाग लग जाए हम उद्गिन हो जाते हैं। दाग पक्का न हो जाए इसलिए तुरंत ही वाशिंग मशीन में धो लेते हैं। गंदे झूँटे बर्तन भी एक दम डिशवाशर से साफ कर लेते हैं अगर गंदगी पड़ी रही तो कॉकरोच अथवा अन्य जीव पैदा हो जाने और दुर्गंध फैलने का […]
जो जोड़ने का सोपान है उसे लेकर इतनी तोड़-फोड़ क्यों ? -डॉ. निर्मल जैन
सूर्य के दर्शन के लिए दीपक जलाने की मूर्खता कोई नहीं करता। फूल की खुशबू का अनुभव करने के लिए हम कभी आंखो का उपयोग नहीं करते। परंतु जो सभी तर्कों के आधार है, हर समस्या का समाधान है उस परम आत्मा, दिव्य-शक्ति को समझने हेतु इतने तर्क-वितर्क का सहारा क्यों लेते हैं? उस का […]
कारोना तू है तो भक्षक लेकिन हम तुझमें शिक्षक भी देख रहे हैं – डॉ. निर्मल जैन
आपदा चाहें प्राकृतिक हो या मानवीय भूल से हो, हमें अस्त-व्यस्त और दुखी तो बहुत करती है लेकिन उसके पीछे जो कारण होते है उनसे हमें सचेत भी कर जाती है। कोरोना वायरस की वजह से पूरा विश्व मुश्किल हालात का सामना कर रहा है, अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित है। कितने लोगों के रोज़गार छिन […]
प्रवचनों का श्रवण, शास्त्रों का पठन बस शमशान-वैराग्य की तरह प्रभावी – डॉ. निर्मल जैन
सड़क किनारे खरबूजो का ढेर देख उस सूफी फकीर का मन खरबूजा खाने को बेताब हो उठा। उसने दुकानदार से कहा –मेरे पास पैसा नहीं है, मुझे मुझे अल्लाह के नाम पर एक खरबूजा दोगे? बड़ी मिन्नत-आरजू के बाद खरबूजे वाले ने खराब हो रहे खरबूजों में से एक खरबूजा दे दिया। खरबूजे की हालत देख फकीर का मन खाने के […]
बुद्ध ने अपने अंतिम उपदेश में शिष्यों से कहा था कि -अपना प्रकाश खुद बनो, अर्थात “आत्मनिर्भर बनो”। -डॉ. निर्मल जैन
शिष्य आनंद उनके इस उपदेश से अत्यंत दुखी हुआ। तब बुद्ध ने कहा -मेरे पीछे पीछे कब तक चलोगे? स्वयं चलने का प्रयत्न क्यों नहीं करते? महावीर, राम, कृष्ण और गुरुनानक सबने आत्मनिर्भर और स्वावलंबी बनने का संदेश दिया है। भारत को आजादी तो मिल गयी, लेकिन जब तक हम हमारी ज़रुरतो के लिए विदेशी […]
खोजो तो हर दुख में सुख और हर व्यक्ति में दुर्योधन ही नहीं अर्जुन भी छिपा है -डॉ. निर्मल जैन
मुँह में एक दॉंत टूट जाता है तो हमारी जीभ सतत वहीं जाती है। बाकी दॉंतों का अस्तित्व ही जैसे समाप्त हो जाता है। आखिर हमने अपनी ऐसी सोच क्योंकर बना रखी है कि जो खो गया, जो भी अप्रिय घटित हुआ है उसी का स्मरण करते रहते हैं। जो नहीं मिला उसी का ग़म […]
प्रशंसक हैं अथवा किसी प्रयोजन हेतु जुड़े चापलूस – डॉ. निर्मल जैन
लॉकडाउन में शरीर के आवागमन की मर्यादा हो गयी है। जब शरीर मंद पड़ता है तो वाणी स्वच्छंद हो ही जाती है। पूरा विश्व कोरोना से जूझ रहा है। लेकिन ऐसी विषम स्थिति में भी राजनेतिक,सामाजिक, धार्मिक हर क्षेत्र में वाणी की उठक-पठक चरम पर है। वाणी का मूल्य क्या है और उसका अभाव कितना पीड़ादायक हो सकता है, यह […]
स्वप्न और खजाने क्या कभी पूरे भर पाते हैं?- डॉ. निर्मल जैन
एक दिन मैंने अद्भुत सपना देखा। सपने में मैं ऐसा भिखारी बना हूं जिसने अपनी सारी उम्र की कमाई एक-एक पैसा जोड़ कर एक स्वर्ण मुद्रा खरीदी। फिर उस मुद्रा को ले कर मैं एक सेठ की हवेली के पास जा पहुंचा। सेठ ने मुझे भिखारी के वेश में देख कर हवेली का द्वार बंद […]
क्या हम रात्रि-भोजन के त्यागी हैं? – डॉ. निर्मल जैन
(यह लेख रात्रि-भोजन का समर्थक नहीं है। अपितु जैनधर्म के अनुसार रात्रि-भोजन-त्याग को परिभाषित करता है।) अंग्रेजी की कहावत है – *Deads of Darkness are commited in the dark.* अर्थात् काले, अन्याय और अत्याचार के कार्य अंधकार में ही किये जाते है। हमारी आत्मा और शरीर दोनों का संबंध भोजन से है। शुद्ध और सात्विक भोज शुद्ध विचार उत्पन्न […]
झुमके तो 10 तोले के ही पहने जाएंगे भले ही कानों की लौ छी जाए- डॉ. निर्मल जैन
मत करो देश की चिंता। न फिक्र करो समाज की। मत मानो शासन-प्रशासन की। डॉक्टर्स की सलाह में भी आपको कोई अपना हित नहीं दिखाई देता। लेकिन अपना और अपने परिवार का ध्यान तो रखो। यह प्राणलेवा कोरोना वायरस खुद आपके या किसी के दरवाजे आकर नहीं कहेगा कि -मैं आ गया हूं। यह तभी आएगा जब इसे निमंत्रण […]
लॉक”DOWN” में मनोबल “UP” बनाए रखने की स्रोत -महिला-शक्ति के नाम: डॉ. निर्मल जैन
NOTE-(यह लेख केवल सच का उदघाटन करता है किसी पर आक्षेप नहीं।) लेखक : डॉ. निर्मल जैन लड़की शादी के दो दिन बाद ही ससुराल की मान-मर्यादा को आत्मसात कर उस घर को अपना घर बताना शुरु कर देती है। लेकिन शादी को कितने साल क्यों ना हो जायें दामाद कभी भी अपने ससुराल को अपना […]
नाम परिवर्तन से गुण-दोष नहीं बदलते- डॉ. निर्मल जैन
वह सब कुछ जो अच्छा नहीं है केवल इसलिए अच्छा नहीं बन जाता कि हम उसे पसंद करते हैं या हमारे मन को भाता है। विकार उत्पन्न करने वाले पेय और खाद्य-पदार्थ मात्र इसलिए स्वास्थ्य के लिए हितकर नहीं हो जाते कि वे हमें स्वादिष्ट लगते हैं। अच्छा होना अलग बात है और अच्छा लगना […]
धर्म तो जीवन की हर क्रिया, हर पल का सहचर है- निर्मल जैन
लेखक-डॉ. निर्मल जैन संसार में दो तरह के लोग होते हैं एक धार्मिक और दूसरे धर्मात्मा। धार्मिक लोग वह होते हैं जो अपने आप को धार्मिक क्रियाओं तक ही सीमित रखते हैं। धर्मात्मा प्रवृत्ति वाले धर्म को अपनी आत्मा में बसा लेते हैं। धार्मिक-क्रिया करना और धर्म को आत्मा में बसा लेना दोनों में जमीन आसमान का […]
लॉकडाउन से निकला सच-जीवन-यापन के खर्च तो कम, दिखावा ही खर्चीला होता है। – डॉ. निर्मल जैन
लेखक-डॉ. निर्मल जैन भविष्य की सुविधाओं को खरीदने के लिए हम अपना वर्तमान बेचने लगे। सूर्योदय से देर रात तक अधिकतर समय धन और सुविधाएं की तलाश में बिताते रहे। घर केवल रैन-बसेरा सा हो गया। जीवन-साथी को समय नहीं दे पाना अलगाव का सबसे बड़़ा कारण बन गया। परिवार संघर्ष, विवाद, अशान्ति, के चलते टूटने की कगार पर आ […]
सहज रूप में ज्यादा से ज्यादा सहज बनें
एक सूक्ति है महावीर और राम अगर सौ बार भी जन्म लेंगे तो उससे क्या होता है, जब तक वह हमारे भीतर पैदा नहीं होते। सरलता से होंगे भी नहीं क्योंकि हमने अपने मन के अंदर उन्हें जन्म देने या उन्हें प्रतिष्ठित करने लायक जगह छोड़ी ही नहीं है। वहां विषय-कषाय के कूड़ा-करकट के कारण पहले ही “ओवरलोडिंग” की समस्या […]
प्रेम ही मार्ग है, प्रेम ही हमारी मंजिल है – ममता जैन, एडवोकेट
लेखिका- एडवोकेट ममता जैन, संत कबीर कुछ सोच-विचार कर ही कह गए हैं –“ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय”। शायद उनका अनुभव रहा होगा कि केवल पुस्तकों को पढ़कर पंडित कहलाए जाने भर से यह जरूरी नहीं हो जाता कि जीवन के भी पंडित हो गए। पुस्तक पढ़े हुए पंडित कोरे तर्क-वितर्क वाद-विवाद और शास्त्रार्थ […]
“हम हैं तो मूलत: कृष्ण अगर भटक गए तो कंस”- डॉ. निर्मल जैन
लेखक-डॉ. निर्मल जैन हम में से हर कोई सब को व्यवस्थित देखना चाहते हैं। लेकिन स्वयं को व्यवस्थित करने के प्रति उदासीन रहते हैं। ऐसा इसलिए कि औरों को अनुशासन में रखना आसान होता है पर स्वयं को अनुशासित करना बहुत कठिन तो है ही बहुत बड़ी चुनौती भी है। स्व-अनुशासन! अनुशास्यते नैन।अर्थात स्वयं का […]
महावीर जन्म कल्याणक महोत्सव क्यों ? – मनोज जैन
लेखक- मनोज जैन व्रत, उपवास तन-मन के शोधन के लिए और पर्व, उत्सव अपनी सूक्ष्म क्षमताओं, निराशाओं को दूर हटाने एवं अपनी दिव्यता के संकेत को पाने के लिए मनाये जाते हैं। महापुरुषों की जयंतियाँ उनके द्वारा वांछनीय उमंगों, भावनाओं, आत्मविश्रांति व उन्नत ज्ञान का प्रचार-प्रसार हेतु मनायी जाती हैं। महापुरुषों की जयंती मनाई जाती है लेकिन तीर्थंकरों के महोत्सव मनाये जाते […]
अपने−अपने परम्परागत वैशिष्टय को रखते हुए सभी वर्ग, जाति एवं धर्म एक−दूसरे के समीप आयें- तीर्थंकर महावीर
लेखक – डॉ. निर्मल जैन (ret.जज) जब मानवीय मूल्य मिथ्याभिमान द्वारा धूल-धूसरित कर दिये गए थे। दुर्बल-उत्पीड़न चरम पर था। जनमानस अंधविश्वासों के अंधकूप में डूब रहा था। एक वर्ग-विशेष की संपदा बन कर धर्म पुस्तकों में सिमट गया था। धन-लिप्सा और भौतिक भोग-विलास के समक्ष त्याग और अपरिग्रह सूत्र बौने पड़ गए थे। इसी […]
क्या सत्य का ठेका किसी एक व्यक्ति या वर्ग ने ही ले रखा है? -डॉ. निर्मल जैन
हमारा लोकतंत्र हमें जिस अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है, उस स्वतंत्रता की सीमा होती है। जब यह स्वतन्त्रता किसी के मान-सम्मान अथवा देश की एकता, अखंडता और शांति के लिए खतरा बनने लगती है तो सहनशीलता से परे हो दंडनीय अपराध बन जाती है। बीते दिनों हम लोगों के द्वारा ही चुने गए प्रतिनिधियों ने संसद में […]