31अक्टूबर (शरद पूर्णिमा) के दिन दिगम्बर जैन संत शिरोमणि आचार्य श्री 108 विद्या सागर जी महाराज का 75 वाँ अवतरण दिवस पर विशेष जानकारी प्रकाशित की जा रही है।
कर्नाटक राज्य के सदलगा के समीप स्थित चिक्कोड़ी गाव में वर्ष 1946 में एक बालक का जन्म हुआ था। आचार्य श्री का ग्रहस्थ अवस्था में नाम विद्याधर जैन अष्टगे था। वर्ष 1967 में आचार्य श्री देशभूषण जी महाराज से ब्रह्मचर्य व्रत लिया और उसके बाद आचार्य ज्ञान सागर जी महाराज से 30 जून 1968 को दीक्षा ली थी। फिर 22 नवम्बर 1972 को आचार्य बने थे।
सबसे ख़ास बात यह है की आचार्य श्री के माता-पिता सहित दोनो बहने और दो भाई ने भी ग्रहस्थ अवस्था को त्याग कर दीक्षा का मार्ग लिया। आचार्यश्री ने 300 से अधिक मुनिराज और माता जी को दीक्षा दी है। इसमें अनेक मुनिगण और आर्यिका, माता जी के अलावा एलकजी सहित क्षुलल्क-क्षुल्लिकाए भी शामिल है।
ब्रह्मचारी भाई-बहन को ही दीक्षा का फल मिलता, बड़े-बड़े पद त्याग करे
आचार्य श्री के संघ में जितने भी मुनिराज और आर्यिका माता जी है वे सभी बाल ब्रह्मचारी है। इसी तरह हज़ारों की संख्या में बाल ब्रह्मचारी भाई-बहन अभी भी आचार्य श्री की प्रेरणा से देश भर में समाज की सेवा में लगे है। इसी तरह संघ में ऐसे मुनिराज भी है जो की करोड़ों रुपए के पेकेज वाली नोकरी को छोड़ कर दीक्षा धारण कर चुके है। इसी तरह पुलिस विभाग में डीएसपी, डिप्टी कलेक्टर सहित अन्य सरकारी विभाग में अहम को त्याग कर दीक्षा के पद पर अनेक ब्रह्मचारी भाई-बहन निकल चले है।
आचार्य श्री द्वारा रचित ग्रंथ
आचार्य श्री ने अनेक ग्रंथ लिखे है। इसमें सबसे प्रमुख मूकमाटी महाकाव्य है। इसके साथ ही नर्मदा का नरम कंकर, डुबो मत लगाओ डुबकी, तोता क्यू रोता? चेतना के गहराव में। इसी तरह संस्कृत भाषा, कन्नड़, बंगला सहित अन्य भाषा में भी आचार्य श्री ने ग्रंथ लिखे है।
70 से अधिक मंदिर के पंचकल्याणक कराए
आचार्य श्री के सानिध्य में 70 से अधिक मंदिर के पंचकल्याणक हुए है। इसमें सिर्फ़ मप्र में ही 55 से अधिक मंदिर के पंच कल्याणक हुए है। इस वर्ष इंदौर में आचार्य श्री ने एक साथ एक ही स्थान पर 13 मंदिर के पंच कल्याणक कराए थे, जो की एक कीर्तिमान बन गया है। अब फ़रवरी 2021 में सिद्धोदय क्षेत्र नेमावर मंदिर का पंचकल्याणक होना प्रस्तावित है।
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आचार्य श्री के इंदौर प्रवास के दौरान रचे अनेक कीर्तिमान गए हैं
आचार्य श्री के इंदौर आगमन के बाद अनेक कीर्तिमान बने है। इसमें संभवतः इतिहास में पहली बार 13 मंदिरों का एक साथ एक ही स्थान पर पंचकल्याणक हुआ। इसी तरह इंदौर से सम्मेद शिखर जी तीर्थराज तक 1251 यात्रियों द्वारा स्पेशल ट्रेन आचार्य श्री विद्यासागर एक्सप्रेस से यात्रा की गई। सांवेर रोड स्थित रेवतीरेंज में बन रही प्रतिभा स्थली पर 225 फ़ीट ऊँचा सर्वोदभद्र जिनालय और 126 फ़ीट ऊँचा सहस्त्रकूट जिनालय के निर्माण के लिए शिलान्यास एवं भूमिपूजन किया गया। आचार्य श्री की मंगल अगवानी भी एतिहासिक थी। कारण की उस समय इंदौर और आस-पास के अनेक ज़िले से लगभग १ लाख से अधिक समाजजन ने आचार्य श्री के मंगल प्रवेश को देखने का सौभाग्य हासिल किया था।
जेल में बंद क़ैदियों का उद्धार किया
आचार्य श्री ने देश के विभिन्न जेलो में बंद क़ैदियों के उद्धार के लिए भी अनेक कार्य किए है। इसमें सबसे प्रमुख जेलो में हथकरघा लगवाए है। उन हथकरघा से अहिंसक धागा या कपड़ा बनता है। इसके बदले में मेहनत करने वाले क़ैदियों के परिवार को भरण-पोषण के लिए निर्धारित राशि दी जाती है। सिर्फ़ वो ही बंदी (क़ैदी) हथकरघा को चला सकते है जो की मांस और मदिरा का त्याग करते है। हथकरघा को बढ़ावा देने के लिए आचार्य श्री ने विशेष पंक्ति भी लिखी है की “खेती बाड़ी है, भारत की मर्यादा, शिक्षा साड़ी है”।
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पीले पाषाण के बड़े मंदिर का इंदौर को मिला सौभाग्य
आचार्य श्री के इंदौर प्रवेश के बाद सबसे बड़ी सौगात 2 बड़े मंदिर की मिली है। सांवेर रोड स्थित रेवती रेंज में बन रही प्रतिभा स्थली पर 225 फ़ीट का सर्वोदभद्र जिनालय और 126 फ़ीट ऊँचा सहस्त्रकूट जिनालय का निर्माण होगा। दोनों मंदिर पीले पाषाण से मनाए जाएंगे। इन पर आकर्षक कलाकृति उकेरी जाएगी। यह दोनो मंदिर प्रदेश में अनोखे मंदिर होंगे जिनकी उम्र हज़ारो साल की रहती है।
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आचार्य श्री के संदेश देश में विचार बन गए
आचार्य श्री के संदेश हमेशा देश में विचार बने है। ??इंडिया नहीं भारत बोलो से अब ऐसी प्रेरणा लोगों को मिली है की वे हर जगह अधिकांश कार्य में हिंदी भाषा का उपयोग करने लगे है। इसी तरह आचार्य श्री के संदेश गौ-रक्षा करो भारत बचाओ, भारतीय संस्कृति बचाओ धर्म बचाओ, हथकरघा के वस्त्र अपनाओ-स्वदेशी पहनो-स्वावलंबी बनो, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ-प्रतिभास्थली आओ-शिक्षा के साथ संस्कार अपनाओ, पशु धन हमारी प्राकृतिक धरोहर है, इसके विनाश से न तो हरियाली बचेगी, न ही खुशहाली।
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