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नवरात्री की वह रात 

सी आर पार्क जिसे लोग चितरंजन पार्क के नाम से भी जानते हैं ,दिल्ली का एक ऐसा हिस्सा और नवरात्री के लिए प्रसिद्ध। इस जगह के बारे में क्या बताऊँ जितना कहूं कम है। नवरात्री त्यौहार कहें या पूजा यह पर्व नारीशक्ति का प्रतीक है और भारत में इसे बड़े धूम धाम से मनाया जाता है ,जी हाँ यह वही भारत है जहाँ सबसे ज़्यादा दुर्दशा नारी की हीं होती है ,कन्यापूजन के दिन छोटी बच्चियों को ढूंढ़ते हैं और असल ज़िन्दगी में पैदा होने से पहले हीं  ख़त्म कर देतें हैं। खैर छोड़िये यह तोह इस समाज का कटुसत्य है जिसे हम कितनी भी कोशिश कर लें ख़त्म नहीं कर पातें हैं।
न जाने घूमते घूमते किस सोंच में पड़ गयी फिर तय किया सी आर पार्क का सफर जहाँ नवरात्री के दिनों में पहुँचने में काफी समय लगता है अगर आप किसी और इलाके से आते हैं तो क्यूंकि यहाँ सबको इतनी जल्दी होती है की जल्दबाज़ी में न खुद आगे बढ़ते हैं न किसी और को बढ़ने देते हैं और फिर शुरू होता है जाम का सिलसिला।
यह करीब दो साल पहले की बात है, मैं निकली मुनिरका से शाम छः बजे और होच्चिंग मार्ग पहुंची रात के नौ बजे ,लेकिन सी आर पार्क की रौनक और वहां सजे पंडालों को देखने के लिए इतना तो कर हीं  सकते हैं। ऐसे भी साल में  यह मौका  एक बार ही मिलता है, आखिर पहुँच हीं गयी मैं  यहाँ के फेमस मिठाई की दूकान  के पास ,कमला स्वीट्स ,सुना है यह  काफ़ी सालोँ से है और यहाँ की मिठाइयां काफ़ी फेमस हैं ,वह तो मुझे यहाँ  पहुँचते हीं यहाँ की  खुशबू ने यह बात बता दी।लोगों  की भीड़ ने भी यह बात बताई मुझे मीठा पसंद नहीं शायद इसलिए  समझ न पायी बस  वहां  की भीड़ ने गाडी वहीँ पार्क करने पर मजबूर किया लेकिन  यह भी अच्छा है। इस बार तो कमला स्वीट्स के  अमर उजाला का बड़ा सा बैनर लगा था जहां  सिल्वर जुबली सेलिब्रेशन  चल रही थी उस गली के अंदर जाते हीं दिखी ख़ूबसूरती ,कलाकारी और ढेर सारी मेहनत जो हम सभी के लिए की जाती है। लम्बी सी लाइन और इंतज़ार के बाद उस भव्य  पंडाल के पास पहुंचे ,अंदर शक्ति और सुंदरता की प्रतीक वह खूबसूरत मूरत मानों जिसने भी बनाया हो देखा हो उन्हें। माँ दुर्गा की प्रतिमा और उन्हें पूजते लोग आस्था और विश्वास का एक अनोखा मेल कोई रो कर प्राथना कर रहा  था तो कोई सेल्फी लेने को परेशान।
इतना प्यारा माहौल ,हर  तरफ सुंदरता और उस सुंदरता को निहारते कुछ पागल सी नज़रें। बहुत से कलाकार गा भी रहे थें। संस्कृति जो उभर के  आ रही थी, आह! क्या थी वहां  की रौनक साड़ी और बिंदी हर तरफ खूबसूरती। काफी स्टाल्स, कहीं चइनीज खाने को भीड़ तो कहीं डोसा और गोलगप्पे  की भीड़  बहुत मज़ा आया   लेकिन  एक बात यहाँ भी पता चली हमारे देश में न जाने कितनी  भाषाएं  है सबके खाने की  अलग़ पसंद फिर भी सब एक हैं।

अब आया वहां से आगे बढ़ने का समय तो दूसरे पंडाल और मेले को देखने की उत्सुकता में आगे बढ़ी ,आगे बढ़ी पैदल पैदल सजावट और लोगों को देखते हुए, चलने का भी एक अलग हीं  मज़ा है। पेड़ों पर लगे बल्ब हर तरफ रौशनी सड़क के दोनों तरफ स्टाल्स  वह भी अलग अलग  चीज़ों के कहीं भेलपुरी तो कहीं रोल कहीं आइसक्रीम ,आइसक्रीम का लुफ्त उठाते उठाते आगे बढ़ी और पहुंची काली मंदिर जहाँ पंडाल के साथ साथ झूले  थें ,पंडाल में खूबसूरत सी मूर्ती और इतनीं भीड़ की पाँव रखने की भी जगह नहीं लेकिन झूलों के पास सिर्फ बच्चों की प्यारी सी हंसी। उस भीड़ में थे कुछ लोग मदद की आस में कैंसर संस्थान से थे  आँखों में उम्मीद और मन में निराशा थी, लोग खाने में  हज़ारों खर्च कर  रहें थें लेकिन क्या किसी के पास इतने  भी पैसे नहीं थे की कोई मदद  करे उनकी।कुछ हीं दूर आगे रास्ते में चीज़ें तो बहुत सी चीज़े थीं देखने के लिए  लेकिन न  जाने क्यों नज़रेँ बार बार उस इंसान पर ठहर रहीं थीं  वह बिना हाथ पैर के इस उम्मीद में था की कोई उसकी मदद करे लेकिन कहाँ किसीकी नज़रें उस चकाचौंध से हटतीं ,,जिनकी हटती वह मेहरबान  वरना न जाने  कितनी बार निराश हुईं उसकी ऑंखें।

 मैंने तो अपने  हाथ पीछे नहीं किये पता है  मेरे देने से कुछ ज़्यादा  फायदा नहीं हुआ होगा उन्हें  लेकिन यह भी  पता है की मेरा कुछ कम भी नहीं होगा। खैर एक यह भी है अनदेखा हिस्सा ,अब बहुत से अच्छे अच्छे पंडालों और मूर्तियों को देखने के बाद लौटने का समय आया। वापस बढ़ी अपनी  गाडी की ओर कुछ लोगों की नज़रें ऑटो और कैब  के  इंतज़ार  में थीं तो कोई चलते चलते खुशियां बटोर रहा था। कहीं बच्चा और घूमने की ज़िद्द कर रहा  था तो कहीं किसी को घर जाने की  जल्दी थी।
 आगे बढ़ी कुछ देखा ,कुछ ऐसा जो नहीं होना चाहिए था ,कुछ ऐसा जो चाह कर भी नहीं  भूल सकती थी ,चिराग दिल्ली फ्लाईओवर के पास विंडो सीट के पास बैठकर बाहर देख हीं रही थी की देखा दूसरी ओर कुछ लोगो की भीड़ थी मैंने वजह जानने की कोशिश कि, तो पता चला की एक तरफ स्कूटी और एक तरफ एक आदमी जो रोड पर गिरा हुआ था।  खून से लतपथ ,हर तरफ सिर्फ खून हीं खून,पहली बार देखा था ऐसा कोई मंज़र,दुःख हुआ बहुत दुःख और उससे भी ज़्यादा लाचार थी की कुछ न कर पायी ,लेकिन जो लोग थे उस तरफ क्या वह भी इतने ही लाचार थे उस जगह के थोड़ी ही दूर पर मैक्स था लेकिन किसी की मदद करने का इतना डर की खड़े होकर तमाशबीन बने लोग कुछ कर भी नहीं सकते थे न जाने कबसे पड़ा होगा वह इंसान वहां न जाने कोन  इंतज़ार कर रहा होगा उसका ,लेकिन क्या हमारा देश सचमे ऐसा है या यह सिर्फ मेरी सोच है। आखिर क्यों उस अधमरे इंसान की कोई मदद नहीं कर रहा था ,क्या पता उसकी जान बच सकती हो… इसी सोच के साथ नवरात्री की वह रात बीती लेकिन आज भी कहीं न कहीं सोचतीं हूँ की क्या वह ठीक होगा या क्या हुआ उस इंसान का ,,,,,वह रात। ..कुछ ऐसी थी वह रात जो बीती कुछ खट्टी मीठी यादों और न भूलने वाली बातों के साथ।

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