लेखक- मनोज जैन
व्रत, उपवास तन-मन के शोधन के लिए और पर्व, उत्सव अपनी सूक्ष्म क्षमताओं, निराशाओं को दूर हटाने एवं अपनी दिव्यता के संकेत को पाने के लिए मनाये जाते हैं। महापुरुषों की जयंतियाँ उनके द्वारा वांछनीय उमंगों, भावनाओं, आत्मविश्रांति व उन्नत ज्ञान का प्रचार-प्रसार हेतु मनायी जाती हैं। महापुरुषों की जयंती मनाई जाती है लेकिन तीर्थंकरों के महोत्सव मनाये जाते हैं।
महावीर का जन्म-कल्याणक-महोत्सव भी हम इसलिए मनाते हैं कि इस दिन उनके गुणों का स्मरण करके हम चुनौतियों का साहस के साथ सामना करें उनसे घबराएँ नहीं। केवल महावीर का नाम जप कर या यशोगान कर बैठें नहीं, पुरुषार्थ भी करें। प्रतिकूलताओं से दबें नहीं, न उनके साथ समझौता करें और चित्त को व्यथित भी नहीं करें। बल्कि विचारें कि महावीर में जो चैतन्य रम रहा था वही चैतन्य मेरा आत्मा है। जैसे उन्होने चुनोतियों का सामना कर विकारों, कुरीतियों पर विजय प्राप्त की वैसे ही एक-एक पग आगे रखते-रखते हम भी विजय प्राप्त कर लेंगे।
जब महावीर इस धरा पर आए, उस काल में सामाजिक जीवन में आर्थिक विषमता, वर्गभेद, हिंसा, ग्लानि चरम पर थी। प्रभुतासम्पन्न वर्ग जनसाधारण का शोषण और दुरुपयोग कर रहा था। नर-नारी, दास-दासियों के रूप में बिक रहे थे। सारा समाज अस्त-व्यस्त। पशु अंध विश्वास की बलि चढ़ रहे थे। चारों ओर अधर्म और अज्ञान का अंधकार व्याप्त था।
जनमानस की पीड़ा को देख महावीर सांसारिक सुख-सुविधाओं में न उलझ कर समाज में व्याप्त बुराइयों, भ्रांतियों, कुरीतियों को दूर करने के लिए जीवन के निर्मल लक्ष्य की ओर अग्रसर हो गये। उन्होने तीस वर्ष की आयु में संसार की असारता को जान सारे भोगोपभोग त्याग दिगम्बर रूप धारण कर निज-पर कल्याण हेतु दिगम्बर रूप धारण किया।
श्रावण कृश्ण प्रतिपदा को सूर्योदय के समय तीर्थंकर महावीर की दिव्यध्वनि प्रस्फुटित हुई। देशना का यही शुभ दिन वीर शासन की स्थापना का दिन था। तीर्थंकर महावीर के उपदेश सरल, आडंबर और औपचारिकता से विरक्त थे। वहां न खंडन था, न मंडन। थी सत्य की एक सीधी पहुँच। था केवल आत्मा की अनंत शक्ति से साक्षात्कार का सीधा, सच्चा मोक्षमार्ग। महावीर ने जीवों को समृद्ध जीवन और आंतरिक शांति पाने के लिए अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह पर स्वयं आचरण कर जनमानस की सोई हुई चेतना को जाग्रत किया।
महावीर आज नहीं हैं लेकिन वर्तमान विषम स्थिति से त्राण पाने का अगर कोई समाधान है तो महावीर के यही सूत्र हैं। इसलिए आज का महावीर जन्म कल्याणक बहुत कुछ कहता है।
महावीर कि देशना के अनुसार –
-मुझे मत जिओ, मेरी तरह जिओ।
-सात्विक, शाकाहारी, नियम, संयम,सरलता से रहोगे तो अपेक्षाकृत महामारी का खतरा कम होगा।
– जो सिर्फ अपनी आवश्यकताओं तक सीमित है, शान-शौकत से दूर उसे लॉकडाउन में भी कोई तकलीफ नहीं।
– जो आडंबर, दिखावा नहीं करता तथा महावीर जिसके मन में है, आचरण में है, जो महावीर को आंखों से नहीं मन से वंदन करता है उसे कोई फर्क नहीं पड़ा कि जनता कर्फ्यू में मंदिर या तीर्थ के द्वार बंद हैं।
-महावीर के अनुसार जिसके पास अनीति से इकट्ठा किया हुआ परिग्रह नहीं है उसे किसी भी आर्थिक सुधारों, आर्थिक मंदी या किसी भी प्रकार की आर्थिक हलचलों से कोई फर्क नहीं पड़ा।
– जिसने अहंकार छोड़ा अनुशासित रहा, शासक बनने के चेष्टा नहीं और जिसने यह जाना कि यह ब्रह्मांड उसका अकेले का नहीं सब का ही है। उस पर न काल का प्रभाव न वातावरण का प्रभाव, न कोई अभाव न तनाव।
– हर आत्मा स्वतंत्र है, समान है। जो स्वयं स्वतंत्र रह कर किन्हीं पर पराधीन नहीं है। उसे आज के सोशल डिस्टेन्सिग काल में भी कोई परेशानी विशेष नहीं हुई।
–जीवित रहने के लिए बहुत थोड़ा चाहिए। दिखावे के लिए संसार की संपूर्ण संपदा भी कम है। जिसने महावीर का यह सूत्र जाना वह तन मन से स्वस्थ बहुत सी व्यर्थ की उलझनों से दूर है।
–यह महावीर जन्म कल्याणक बाहर के कृत्रिम प्रकाश को बुझा चेतना के दीप को आलोकित करने वाला है।
लेखक परिचय – आर्किटेक्ट मनोज जैन नई दिल्ली, रुड़की विश्वविद्यालय के गोल्ड मेडलिस्ट है और आर्किटेक्ट एवम टाउन प्लानर है।