परम पूज्य एलाचार्य श्री 108 अतिवीर जी मुनिराज ने पर्वाधिराज दसलक्षण महापर्व के अवसर पर भारतवर्षीय दिगम्बर जैन संघ भवन, कृष्णा नगर, मथुरा में द्वितीय लक्षण “उत्तम मार्दव धर्म” की व्याख्या करते हुए कहा कि जो मनस्वी पुरुष कुल, रूप, जाति, बुद्धि, तप, शास्त्र और शीलादि के विषयों में थोड़ा सा भी घमंड नहीं करता, उसके मार्दव धर्म होता है| आचार्य कहते हैं कि जब तक मार्दव धर्म के विपरीत मान विद्यमान है तब तक वह मार्दव धर्म को प्रकट नहीं होने देता| मृदुता अर्थात् कोमलता का नाम मार्दव है और मान (अहंकार) के अभाव में ही मार्दव धर्म प्रकट होता है| आचार्यों ने मान को महाविष के समान कहा है, जिसके कारण संसार में हमें नीच गति प्राप्त होती है| यदि हमें अपना मनुष्य भव सार्थक करना है तो हमें अहंकार छोड़कर मार्दव धर्म को अपनाना होगा|
एलाचार्य श्री ने आगे कहा कि क्षमा के सामान मार्दव भी आत्मा का स्वाभाव है| मार्दव स्वभावी आत्मा के आश्रय से आत्मा में जो मान के अभाव रूप शांति-पर्याय प्रकट होती है उसे भी मार्दव कहतें हैं| आत्मा मार्दव स्वभावी है, पर अनादी से आत्मा में मार्दव के अभाव रूप मान कषाय पर्याय ही प्रकट रूप से विद्यमान है| जीवन में उर्ध्वगमन के लिए झुकना अत्यावश्यक है। जिस व्यक्ति में नम्रता तथा सहिष्णुता विद्यमान है, वही व्यक्ति जीवन में सफलता को प्राप्त कर सकता है। झुकना इस बात का सूचक है कि व्यक्ति अभी जीवित है क्योंकि शरीर में अकडन तो मुर्दों के आती है। मानव जीवन को सार्थक करने के लिए हमेशा दूसरों की ख़ुशी के बारे में सोचो। मन से मान का मंझन करना ही मार्दव धर्म की प्रासंगिकता है। यदि हमने अपने जीवन दस धर्मों को अंतःकरण से अंगीकार कर लिया तो हमारा कल्याण हमसे दूर नहीं है।
मन सबका नियन्ता बनकर बैठ जाता है| आत्मा भी इसकी चपेट में आ जाती है और अपने स्वाभाव को भूल जाती है| तब मृदुता के स्थान पर मान और मद आ जाते हैं| एक ओर जहाँ मान पाप का दाता है, दुःख है, संताप है, रोग है, महामारी है, ठगी है| वहीँ दूसरी ओर मृदुता पुण्य है, सुख है, आराम है, तपस्या है, स्वास्थ्य है| विद्वानों ने कहा है कि विनय के द्वार को स्वीकारें, मार्दव धर्म को स्वीकारें| यह मार्दव धर्म संसार का नाश करने वाला है, भावों को निर्मल बनाने वाला है, इन्द्रिय व कषायों का निग्रह करने वाला है, बैर का नाश करने वाला है, मोक्ष प्रदान कराने वाला है| अतः मान त्यागें ताकि आपका उत्थान हो, आप भी मोक्ष मार्ग पर अग्रसर हों और आत्म-उन्नति के शिखर पर विराजमान हों|