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पवित्रता का भाव ही शौच धर्म है मुनि श्री शैल सागर जी

मुंगावली: मुनि श्री शैल सागर जी महाराज ने धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा जो व्यक्ति संतोष को ह्रदय में धारण करता है और शरीर के माध्यम से तप करता है जो शौच धर्म है वह निर्दोष है। इस संसार में धर्म से बढ़कर कोई वस्तु नही है लोभ पाप का बाप है और लोभ के द्वारा कषाय ही होती है। जिस व्यक्ति के ह्रदय मे संतोष होता है वह प्राणी हमेशा सुखी रहता है संसार अवस्था सुख तो नही है लेकिन संसारी प्राणी इन्द्रिय मे सुख मानता है उन्होनें कहा समन्तभद्र स्वामी रत्नकरंड श्रावकाचार मे कहते है यह शरीर स्वभाव से ही अपवित्र है उसमें यदि पवित्रता आती है तो रत्नत्रय से आती है।

उन्होंने कहा रत्नत्रय ही पवित्र है जीवन में शुचिता निर्विचकित्सा अंग से आती है यह शरीर तो मल का पिटारा है जिन्होंने रत्नत्रय को प्राप्त कर लिया है जो रत्नत्रय से सुशोभित है और शत्रु और मित्र में समभाव रखते है ऐसे मुनिजन ही शौच धर्म का पालन करते है।

संकलन अभिषेक जैन लुहाडीया रामगंजमंडी

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