अँग्रेजी नया साल 2025 हमारी आकांक्षाओं को चित्रित करने के लिए हमारे सामने एक खाली कैनवास के रूप में शांति, समृद्धि और असीम संभावनाओं से परिपूर्ण हम सभी के लिए एक खुशहाल, स्वस्थ और सफल संभावनाओं की पोटली बांधे खड़ा है । नये साल का आरंभ, एक अंत और एक शुरुआत दोनों को चिन्हित करते हुए हमारे पीछे के मार्ग को देखने और नए उद्देश्य और आशा के साथ आगे बढ़ने का अवसर है । प्रत्येक बीतता वर्ष हमें आकार देता है, सबक सिखाता है, यादें देता है और हमें आगे बढ़ते रहने के लिए प्रेरित करता है कि नए वर्ष में कुछ और बेहतर करके दिखाएँ । व्यक्तिगत लक्ष्यों को पूरा करना हो, सामाजिक संबंधों को बढ़ावा देना हो, या पर उपकार में योगदान देना हो हर क्षेत्र में परस्पर सहयोग से बदलाव लाने के हर अवसर का लाभ उठाने को तत्पर रहें । एक सच्चे अपरिग्रहवादी कि तरह हम जो कुछ भी हैं, जो भी हमारे पास है उसके लिए आभारी रहें, अर्जन के साथ विसर्जन का भी ध्यान रखें । नये साल का आगमन और बीत रहे साल की विदाई का यह पल हमारे जीवन में एक नए अध्याय की शुरुआत की प्रेरणा देता है, नए लक्ष्यों के बीजारोपण का समय होता है । समाज में सबके साथ बैठकर एक दूसरे से प्यार और समर्थन का भाव बढ़ाने, समस्याओं को साझा करने और आत्मविश्वास के साथ चुनौतियों का सामना करने का अवसर है । हमें हर दिन नई उपलब्धियां समेटने का एक और नया मौका मिलने जा रहा है।
विदा और स्वागत के लिए कोई विशेष, भव्य अनुष्ठान का आयोजन की जरूरत नहीं । केवल हम जहां हैं वहाँ की अपनी जिम्मेदारियों और कर्तव्यों को निष्ठापूर्वक निभाने का संकल्प लें, यही काफी होगा । अनिवार्य यह भी होगा कि वित्तीय संस्थानों (बैंक) की तरह अपने नए वर्ष पर बीते वर्ष के लेखे-जोखे को सामने रख कर यह भी चिंतन करें कि विगत दिनों में हमने क्या खोया और क्या पाया है । हमारे तीर्थ, देवालय, आस्था की बैलेंस शीट में कितना नफा-नुकसान हुआ । देखें कि हमने इस ओर कितने और क्या प्रयास किए कि हमारी पुरानी गैर निष्पादित परिसंपत्तियों (NPA) अर्थात हमारी विचारधारा से अलग रहने वालों में बढ़ोतरी हुई या कमी आई । पुराने जीर्ण-शीर्ण क्षेत्रों में से कितनों को नवजीवन मिला ? हमारे ऐसे कितने प्रयासों से हमने किस सीमा तक (नए DEPOSITS) नयी पीड़ी को जोड़ा । राजनेतिक परिपेक्ष्य में चुनाव पश्चात विश्लेषण कि तरह मनन करें कि क्या हमारी आस्था से जुड़े श्रद्धालु (हमारा VOTE BANK) कम हुए तो क्यों और बढ़े नही तो भी क्यों ? नज़र डालें कि क्या उपेक्षित पड़े हमारे अमूल्य और अतिशय-पूर्ण जिनबिंब, धरोहरें अब भी पालक-पांवड़े बिछा हमारी बाट जोह रही हैं ? समाज के संसाधनों के उपयोग को क्या पुरानी लीक पर चलते हुए वीतरागी को राग के महलों में प्रतिष्ठित करने में ही लगे रहे या कुछ रचनात्मक सोच के साथ समाज के दुर्बल वर्ग की सहायतार्थ और नई पीढ़ी की उच्चतम शिक्षा के मंदिर भी बनाए । जिससे कि कल हमें हमारी नई पीढ़ी को हमारे संस्कारों को निगलने वाली पाश्चात्य संस्कृति आधारित शिक्षा संस्थाओं की देहरी पर माथा न टेकना पढ़े । भविष्य के लिए भी कुछ ऐसी योजनाएं बनाईं कि वे धर्म से जुडें, धर्म में रुचि लें और नए युग के साथ कदम बढ़ाते हुए अपने संस्कारों को भी संजोए रखें । अभावों के कारण हमारे सजातीय को कल अपनी विचारधारा बदलने को विवश न होना पड़े । हमसे कहाँ चूक हुई कि देखते-देखते हमारे कई तीर्थस्थान, पर्यटक केंद्र में परिवर्तित हो गए और वहां हमारी आस्था का अवमूल्यन होने लगा । शायद माइक-माला-मंच के सम्मोहन में ऐसे कोई समाधान प्रस्तुत करने का विचार ही नहीं आया ?हमें कई अपने महान आचार्य, मुनिराज का विछोह झेलना पड़ा ? क्या हमारी श्रद्धा-भक्ति, आहार-विहार में संपूर्ण मर्यादा निभाने में कहीं चूक तो नहीं हुई ? श्रद्धा और भक्ति का मतलब है अपने इष्ट से जुड़ना । कहीं हम भक्ति को भी साधारण नित्य- क्रिया-कर्म की तो तरह नहीं समझने लगे । या हम अपने लिए सुख और मोक्ष पाने के लिए ही नई-नई धार्मिक प्रक्रियाओं का अनुसरण करते हुए भक्ति के नाम पर विभक्ति की ओर तो नहीं भटक गए । हमारी लेखनी क्या इधर से उठाकर उधर रखने (COPY PASTE) और दरबारी बन कर ठकुर-सुहाती का ही काम करती रही । PRINT MEDIA की अंतर्वस्तु में वही परंपरागत ‘जयघोष’ वाले कॉलम छपते रहे या कुछ ऐसा मौलिक और क्रांतिकारी चेतना जगाने का भी उपक्रम किया जिससे आस्था और भावनाओं को कर्मकांडी प्रक्रियाओं से मुक्ति मिले, हमारी विचारधारा का लोकोपकारी मूलस्वरूप जनमानस में नवचेतना जागृत करे । हालात कि पुकार है कि अब समय है कि अपने-अपने डंडे छोड़ एक झंडे के साथ संगठित हो बीते कल से सबक लेकर वर्तमान में भविष्य की चुनोतियों को सामने रख आशाओं और आत्मबल से परिपूर्ण सर्व कल्याणकारी योजनाओं को पूर्ण करने हेतु दृढ़ संकल्पित हों । सभी को खुशहाल, स्वस्थ और समृद्ध नववर्ष की शुभकामनाएं ।
lलेखक : जज (से.नि.) डॉ. निर्मल जैन