परम पूज्य एलाचार्य श्री 108 अतिवीर जी मुनिराज के परम पावन सान्निध्य में उत्तर प्रदेश की धर्मनगरी मथुरा के कृष्णा नगर स्थित भारतवर्षीय दिगम्बर जैन संघ भवन में मंगलमय 15वें चातुर्मास के अनन्तर भारी धर्मप्रभावना सम्पन्न हो रही है| रक्षाबंधन पर्व के अवसर पर धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए पूज्य एलाचार्य श्री ने कहा कि आज का दिन वात्सल्य का प्रतीक है| 700 मुनिराजों की रक्षा हेतु श्री विष्णु कुमार मुनि ने अपना मुनि पद त्याग कर दिया था| साधर्मी की रक्षा सबसे बड़ा कर्त्तव्य है अतः हम सभी को इसे भली भाँती निभाना चाहिए| वर्तमान में यदि किसी साधु पर कोई संकट आ जाए तो कोई भी व्यक्ति उसके निवारण के लिए आगे नहीं आता| परन्तु चर्या में कोई कमी हो तो हजारों लोग टोकने के लिए खड़े हो जाते हैं| रक्षाबंधन पर्व मनाने की सार्थकता तभी होगी जब सभी लोग अपने साधर्मीजनों की रक्षा का संकल्प लेंगे तथा हर परिस्थिति में साथ रहने का दृढ़ निश्चय मन में कर लेंगे| वात्सल्य का अर्थ काफी विस्तृत है| आज हर तरफ हिंसा का तांडव चल रहा है| पशुओं के ऊपर हो रहे अत्याचार को देखकर भी आज हम लोग चुप बैठे हैं| जगह जगह आधुनिक बूचडखाने खुलते जा रहे हैं| शायद हमने वात्सल्य को केवल इंसानों तक ही सीमित कर दिया है| परन्तु वात्सल्य तो प्राणी-मात्र के प्रति होना चाहिए|
एलाचार्य श्री ने आगे कहा कि जैन समाज के समक्ष आज एक और चुनौती खड़ी है| 20 तीर्थंकरों तथा हजारों मुनिराजों की मोक्ष स्थली “श्री सम्मेद शिखर जी” आज धीरे धीरे हमारे हाथों से छूटता जा रहा है| परन्तु अफ़सोस हमारी जैन समाज निष्क्रिय होकर हाथ पर हाथ रखे बैठी है| अहिंसा का चोला ओढ़कर हम लोग धीरे-धीरे कायर बन गए| रक्षाबंधन का यह पर्व हमें तीर्थ संरक्षण के लिए भी प्रेरित करता है| हर व्यक्ति को अपने मन में यह संकल्प कर लेना चाहिए कि वह अपने जीवन की परवाह किए बगैर धर्म-राष्ट्र-समाज की रक्षा हेतु सब कुछ न्योछावर कर सकता है| सभा में उपस्थित श्रद्धालुजनों ने धर्म संरक्षण का संकल्प करते हुए एलाचार्य श्री की पिच्छिका पर राखी बाँधी|