मत करो देश की चिंता। न फिक्र करो समाज की। मत मानो शासन-प्रशासन की। डॉक्टर्स की सलाह में भी आपको कोई अपना हित नहीं दिखाई देता। लेकिन अपना और अपने परिवार का ध्यान तो रखो। यह प्राणलेवा कोरोना वायरस खुद आपके या किसी के दरवाजे आकर नहीं कहेगा कि -मैं आ गया हूं। यह तभी आएगा जब इसे निमंत्रण दोगे या लेने जाओगे। इसे निमंत्रण तभी मिलेगा जब गैरजरूरी कामों के लिए या उन कामों के लिए जिनके बिना जीवन-निर्वाह आराम से हो सकता है, या कुछ दिन नहीं किए जाने से कोई असीम हानि नहीं होने नहीं जा रही है उनके लिए घर से बाहर निकलोगे, लोगों से मिलोगे। ऐसी वस्तुओं और पदार्थों के संपर्क में आओगे जिसमें कोरोना वायरस को किसी ने पहले से ही बैठा दिया है।
कोई नहीं जानता कि जो पास से गुजर रहा है वह इस वायरस का वाहक है या नहीं? किसी को नहीं पता जिस पदार्थ को, वस्तु को, मैटल को हम छू रहे हैं उस पर यह कोरोना वायरस का विषाणु किसी के द्वारा पहले से ही विराजमान है या नहीं? इसीलिए अपनी रक्षा करनी है तो अपनी सुरक्षा भी खुद ही करनी है। अभी तक ना कोई वेक्सिन बनी है ना कोई दवा है। जब तक वैक्सीन या दवा नहीं बनती तब तक एक ही मात्र इलाज है, इससे बचाव। वह बचाव है जितना हो सके अपने को, अपने घर में ही सीमित करना। सोचें, फिर से विचारें, किसी और के बारे में नहीं। अपने बारे में, अपने परिवार के बारे में ही सोचें। कि आप नहीं रहेंगे तो परिवार का क्या होगा?
बढ़ते हुए संक्रमण को देखते हुए देश भर में जन-स्वास्थ्य के हित में 4 मई से 17 मई तक लॉकडाउन की अवधि को केवल ग्रीनजोन और ऑरेंजजोन में थोड़ी सी सुविधा के साथ बढ़ा दिया गया है। रेडजोन में कोई राहत नहीं। इसीलिए अगर हम चाहते हैं कि हमारा जीवन ग्रीनज़ोन (हरा-भरा और खुशहाल) रहे तो हमें कोई ऐसा काम या लॉकडाउन का अनावश्यक रूप से उल्लंघन नहीं करना चाहिए। जिससे कि हमारा क्षेत्र ग्रीनजोन से खतरे के निशान रेड ज़ोन में परिवर्तित न हो जाए। सभी धार्मिक स्थल बंद रहेंगे। शाम 7:00 बजे से सुबह 7:00 बजे तक घर से बाहर निकलना निषेध। यह केवल घोषणा मात्र नहीं है यह सब राजकीय आदेश हैं।
लॉकडाउन बढ़े या हटे, इस दौर का तकाजा है कि हम ‘मर्यादा के लॉक’ में एकजुट होकर जो भी इस समय प्राप्त है उसे पर्याप्त समझ अपनी इच्छाओं, आकांक्षाओं को ‘डाउन’ यानी सीमित रखें। माल,शॉपिंग कंपलेक्स, सिनेमा हॉल नहीं खुलेंगे। अपने सारे हठ छोड़ कर हमें समझना होगा कि ऐसे दुस्साहस से कोई फायदा नहीं कि झुमके तो 10 तोले के ही पहने जाएंगे भले ही कानों की लौ छी जाए।
वे लोग भी जो किसी उन्माद में अनावश्यक रूप से अपनी जिद में अड़े थे और कहते थे कि हमारा करोना क्या कर लेगा हम तो पांचों वक्त वुजू करते हैं नमाज पढ़ते हैं, हम पर तो ऊपर वाले का साया है। ऐसे सब आजकल एक-एक सांस के लिए डॉक्टरों के आगे भीख मांग रहे हैं। फिर भी अगर हम नहीं जागते हैं, ऐसे लोगों के हालात से सबक नहीं लेते हैं तो इतना ही कहा जा सकता है कि हम किसी भ्रम के अधीन स्वयं तो आत्मघात करने पर आमादा हैं ही अपने परिवार, अपने मित्रों का जीवन भी संकट में डाल कर पूरे समाज के प्रति गंभीर अपराध कर रहे हैं।
जज (से.नि.) डॉ. निर्मल जैन