ऐश्वर्यशाली जीवन सुख सुविधाएं, करोड़ों रुपये की संपत्ति, अल्प काल में दौलत-शोहरत और सम्मान से भरपूर। फिर भी एक सफल एवं उदीयमान अभिनेता का जीवन से पलायन। आखिर क्यों?
महावीर कह गए हैं –“जीवन कोई मोमबत्ती नहीं जिसे कामनाओं की पूर्ति की आग में जल जाना है। अपितु यह तो एक ऐसी एक ज्योति है जो स्वयं को, परिवार को, समाज, देश को और पूरे विश्व को प्रकाशित कर दे। केवल इसकी लौ को सकारात्मक रूप से जलाये रखना है। जीवन अलभ्य है, जीवन सौभाग्य है। पर कैसी विडंबना कि हम ही उसे मन माफिक नहीं जीते। हम सदैव इकाई, दहाई व सैकड़े़ में लगे रहते हैं। बड़ी खुशियों के अभाव में हम छोटी-छोटी खुशियों को भी नज़र अंदाज कर देते हैं”।
पतझड़ के मौसम में कोंपलों का अंकुरण, शाम की बेला में सूरज के दर्शन नहीं हो सकते। इसके लिए हमें प्रतीक्षा करनी होगी हमारे पास और कोई विकल्प नहीं। पूनम का चाँद पूर्णिमा को ही दिखेगा, कोंपलें फूल बसंत ऋतु में ही आएंगी, सूर्य दर्शन सुबह को ही होगा हम दुःख के क्षण बड़े भारी और लंबे लगने लगते है। इसलिए नहीं कि हममें दुखों को सहने की क्षमता नहीं है, बस हमें समय को बीतने देने का धैर्य नहीं रहा।
यही कारण है कि आज कुछ लोग बहुत कुछ होने पर भी सब कुछ तुरंत पा लेना चाहते हैं। उनसे इंतजार नहीं होता, उनमें समय बीतने देने की समझदारी और धैर्य नहीं रहा है। परिणाम होता है कि निराश होने पर आत्महत्या जैसे निष्कर्ष तक ले लेता है। जब हर संभव प्रयास के बाद भी सफलता नहीं मिलती या दुःख का निवारण नहीं होता तब पार पाने का एक ही रास्ता है प्रतीक्षा कीजिए। समय बीतने दिया जाए। उस ऊहापोह की स्थिति में कोई भी निर्णय लिया जाना अनिष्ट का कारण हो सकता है।
समय बीतने पर संभव है हमें भी विपत्ति को सहन करने की शक्ति आ जाए अथवा सामने वाले के मन में ही कोई अच्छा भाव जन्म लेले। अक्सर ऐसी विषमस्थिति में हम जल्दबाजी में आ जाते हैं और बिना ऊंच-नीच का ध्यान रखें कोई निर्णय लेते हैं जो स्थिति को और भी उलझा देता है। समझदारी इसी में है सब कुछ समय पर छोड़ दें। उतावले न हों। हम कितना ही उपक्रम करें लेकिन पहली दूसरी तारीख में पूर्णिमा का चांद नहीं देख सकते। बाज़ार से खरीदते समय दस-बीस रुपए की चीज़ के लिए बडे़ ध्यान से ‘बेस्ट बिफोर’ की तारीख जांच लेते हैं। पर पैसा कमाने की दौड़ में अपने जीवन की “बेस्ट बिफोर” की तारीख हमें नजर नहीं आती।
अवसाद और उदासीनता को बढ़ावा देने में सोशल और इलेक्ट्रानिक मीडिया पर जो दिखाया जा रहा है, वह दिल ओ दिमाग पर बहुत गलत असर छोड़ रहा है। जो दुनिया, जिन लोगों ने देखी नहीं है, उसे भी देखने की इच्छा लोगों में बलवती होती जा रही है। विलासिताओं की पूर्ति के लिए ऋण ले कर आर्थिक बदहाली के दौर से गुजर रहे हैं। यही स्थितियां डिप्रेशन से ग्रस्त कर देती हैं। धन-दौलत को ही सर्वस्व समझने की प्रवृत्ति के कारण आत्महत्या के मामले बढ़ते जा रहे हैं।
हमें शरीर के दुखों कों मन को नहीं छूने देना है और मन के दुख में तन में शिथिलता नहीं लानी है। जीवन की ऊर्जा के प्रवाह के लिए एक दिशा की, समयबद्धता की आवश्यकता होती है। जल्दबाजी में हमारी सोच अवरुद्ध हो कर जड या दिग्भ्रमित हो जाती है। हमें ऐसा इसलिए लगता है क्योंकि हम जीवन में चिरंतन सुख चाहते हैं। लेकिन इसमें छिपे रहस्य की संभावना को भूल जाते है। अगर सुख चिरंतन होगा तो दुख भी तो वैसा ही होगा। सर्दियों में जीवनदायी लगने वाला सूर्य का ताप क्या गर्मी में भी उतना भाएगा? नींद से शरीर को फूर्ती से भरने वाली रात अगर लंबी होती जाए तो क्या हम पागल नहीं हो जाएंगे?
प्रकृत्ति का क्रमिक परिवर्तन जीवन को संतुलन देता है। इसी प्रकार परिस्थितियाँ भी बदलती रहती है और जो परिस्थितियां विपरीत लगती है हमें उन्हें ही चलते जाने का रास्ता बना लेना चाहिए। ऐसा नहीं कि प्रतिकूलताओं से हार मान कर सफर को समाप्त कर दिया जाये। रास्ता भले ही बीहड़ लगे पर उसके खत्म होने पर मिलने वाली सफलता का आकर्षण अलग ही होता है।
जैन दर्शन का सूत्र है -जीवन का हित इसमें है कि संपूर्ण उपलब्ध्यिां एक साथ न होने पर भी जो प्राप्त हुआ है उसे महत्वपूर्ण समझें। अपने जीवन का उज्ज्वल पक्ष देखना हमारी समस्याओं का एक सुंदर समाधान है। जब भी लगे कि अभाव बहुत है, संकट अधिक है, तब यह देखना उपयुक्त होगा कि इन स्थितियों में जीवन में उपलब्ध्यिां भी तो हैं और ये उपलब्ध्यिां भी सभी को प्राप्त नहीं हैं।