18/07/2023 डोंगरगढ़ | संत शिरोमणि 108 आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ससंघ चंद्रगिरी डोंगरगढ़ में विराजमान है। आज के प्रवचन में आचार्य श्री ने बताया कि लोगो ने सुना होगा या पढ़ा होगा अथवा किसी को डायरेक्ट देखने को मिला हो तो साक्षातकार भी किया होगा। वह वस्तु है अमृत धारा अब इसमें क्या – क्या मिलता है अजवाइन का फूल जो सुख गया है, भीम सेन कपूर और पिपरमेंट इन तीनो के समान अनुपात के मिश्रण से अमृत धारा बनती है। यदि इसके अनुपात में अंतर कर दिया बहुत सारा अजवाइन का फूल, एक छोटी कपूर कि डल्ली और एक चिमटी से उठाकर थोडा सा रख दिया फिर इन सबका मिश्रण कर गट पट करने से भी अमृत धारा नहीं बनेगी।
अमृत धारा बनाने के लिये अजवाइन का फूल जो सुख गया है, भीम सेन कपूर और पिपरमेंट इन तीनो के समान अनुपात से साथ में रख बस दो तो वह अपने आप पानी – पानी हो जाता है और अमृत धारा बन जाती है जिसका भिन्न – भिन्न उपयोग करते है। इसी प्रकार समाज में बहुत शास्त्रों के ज्ञानी व्यक्ति भी आज भ्रमित से लगते हैं। किसी का नाम नहीं ले रहे हैं किन्तु जो ऐसा कर रहा है उसके लिये अवश्य है क्योंकि हमारे पास आगम का आधार है। इसके लिये सर्वप्रथम आचार्य कुंदकुंद ने सर्वप्रथम मोक्षमार्ग को रखने का पुरुषार्थ किया। पुरुषार्थ इसलिए कहना पड़ता है क्योंकि पंचम काल है लोग सुनते कम और शंका ज्यादा करते है, तर्क ज्यादा करते हैं। जब तक आप इसको सम्पूर्ण रूप से सुनते या पढ़ते नहीं तब तक यह विषय आपके लिये आत्मसात नहीं होगा। अमृत धारा के उदाहरण के अनुसार मोक्षमार्ग में भी समान अनुपात से सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यग्चारित्र का होना अनिवार्य है।
गृहस्थ का जो चारित्र होता है वह देश संयम होता है वह पूर्ण संयम नहीं होता है। गृहस्थ चारित्र को लेकर के आत्मानुभूति अथवा समाधी, परम समाधी अथवा एक प्रकार से मोक्षमार्ग को गठित करने का अभ्यास कर रहे हो या बहुमत बना करके करना चाहते हो तो आचार्य कुन्दकुन्द इसे स्वीकार नहीं करते। मूल आपको दिखता नहीं क्योंकि औदायिक भाव रहता है गृहस्थों में जो प्रत्याख्यान के साथ चल रहा है। प्रत्याख्यान कषाय उसे मुनि या श्रमण बनने से उसे रोक रही है और जब तक यह नहीं हटती तब तक वह महाव्रती या मोक्ष्मार्गी नहीं कहा जा सकता है।
उन्होंने कहा मोक्षमार्ग कहो या श्रामण्य कहो दोनों एकार्थ वाचक है। सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान सम्यग्चरित्राणि मोक्षमार्गः। यह एक वचन में है किन्तु एक नइ वस्तु वह मोक्षमार्ग है। गृहस्थ आश्रम में यह तीनो मिल नहीं सकते आंशिक नहीं चाहिये यहाँ समान मात्रा में सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान सम्यग्चरित्र होना अनिवार्य है। गृहस्थ का जब तक अनन्तानुबन्धी भाव, अप्रत्याखान, प्रत्याखान का भी उदय न हो तब तक मोक्षमार्ग कहो अथवा श्रामण्य नहीं हो सकता। जो व्यक्ति चतुर्थ गुण स्थान में भी मोक्षमार्ग मान रहा है वह मोक्षमार्ग का अवर्णवाद कर रहा है। वह कितने अंधकार में होगा सोचिये जो तारे और चंद्रमा कि रौशनी में पढने का प्रयास कर रहा है जबकि उसे पढने के लिये सूर्य नारायण के दर्शन और आलोक कि आवश्यकता है। एषणा समिति, इर्यापथ समिति और आदाननिक्षेपण समिति के लिये भी दिन चाहिये। किसी को बुरा लगा हो तो भूरा समझकर स्वीकार कर लेना।