आज गाँधी जयंती या अहिंसा दिवस मात्र एक औपचारिकता होती जा रही हैं। हम जितनी अहिंसा की बात करते हैं उतनी हिंसा बढ़ती जा रही। कभी कभी अहिंसा ,सत्य ,अचौर्य ,अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य ,शांति आदि शब्द शब्दकोष की शोभा बढ़ाने वाले हो चुके हैं। जितनी नैतिकता की बात होती हैं उतनी अनैतिकता बढ़ रही हैं। शाकाहार की जगह शासन ,जनता मांसाहर के प्रति जागरूक हैं।
जनवरी 2004 में ईरानी नोबेल पुरस्कार विजेता शिरीन इबादी ने स्टूडेंट्स को अहिंसा के महत्व बताने के लिए अन्तराष्ट्रीय अहिंसा दिवस की बात सभी के सामने रखी. जब यह बात भारत तक पहुँची तब कांग्रेस पार्टी सत्ता में थी और इसी कारण कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी को यह बात उचित लगी. समर्थन मिलने पर भारत के विदेश मंत्री ने इसे सयुंक्त राष्ट्र संघ के सामने रखा, जिसके लिए विधिवत वोटिंग की गई. इस प्रस्ताव को सामने आने के बाद 191 देशो में से 140 देशो ने इस बात का समर्थन किया, जिसके बाद 15 जून 2007 में गाँधी जयंती को अंतराष्ट्रीय स्तर पर अहिंसा दिवस घोषित किया गया।
2 अक्टूबर 1869 को गाँधी जी का जन्म हुआ था, वे अहिंसा के परिचायक थे, भारत के इतिहास में वही एक ऐसे नेता रहे, जिन्होंने अहिंसा एवम सत्य की ताकत को चरितार्थ कर सबके सामने उदाहरण पेश किया, इसलिए उनके जन्म दिन को अहिंसा दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। 2 अक्टूबर महात्मा गाँधी जी के जन्म दिवस के उपलक्ष्य मे15 जून, २००७से शुरू हुआ।
अहिंसा जिसका शाब्दिक अर्थ हैं बिना हिंसा की प्रवत्ति. यह शब्द सुनने में आसान होगा, लेकिन जीवन की कठिनाईयों से जूझते हुए इसका पालन करना अत्यंत कठिन हैं।
आज के समय में हिंसा इतनी बढ़ गई हैं कि जानवरों की छोड़ो मनुष्यों को काटने से पहले कोई एक बार नहीं सोचता. ऐसे में आने वाली पीढ़ी को अहिंसा का महत्व कैसे पता चलेगा ? इसी बात को ध्यान में रखते हुए शिरीन इबादी जो कि नोबल प्राइज विजेता हैं, ने इस बात पर प्रकाश डाला था।
सत्य एवम अहिंसा में बहुत बल है, इसे ही कहा जाता हैं काम न होने पर ऊँगली टेड़ी करना अर्थात अहिंसा में ही वो शक्ति है, जो किसी भी कार्य को करने में तत्पर हैं।
हिंसात्मक रवैये से इंसान को जीत तो हासिल हो जाती है, लेकिन आत्मीय शांति कभी नहीं मिलती और सही जीवन यापन के लिए आत्मीय शांति जरुरी हैं।
इसका एक उदाहरण हैं सम्राट अशोक का जीवन. सम्राट अशोक ने कई युध्द किये, चकवर्ती राजा बने. भारत पर अपनी विजय का पताका फैलाया, लेकिन अंत में उन्हें सुख की प्राप्ति नहीं हुई और उन्होंने अहिंसा का परिचायक बनना स्वीकार कर बौध्द धर्म को अपनाया. तब उन्हें वह सुख प्राप्त हुआ, जो उन्हें राजकीय ऐशो आराम में भी नहीं मिला था।
आज व्यक्ति अहिंसा के महत्त्व को नहीं समझता, उसे इतिहास के ये बड़े उदहारण एक फिल्म की कहानी की तरह ही लगते हैं।
गाँधी जी का जीवन भी सामान्य था, लेकिन सामने खड़ी विपत्ति से लड़ने के लिए उनके पास दो रास्ते थे एक हिंसा, एक अहिंसा। उन्हें अहिंसा को चुना। उनका मानना था शांति में जो ताकत है, वो युद्ध में नहीं हैं कई लोगों ने उनकी बातों का विरोध किया, लेकिन गाँधी जी अपने सिधांतों से पीछे नहीं हटे। अपने सिधान्तो के कारण उन्होंने भगत सिंह, राज गुरु एवम सुख देव की फांसी स्वीकार की, क्यूंकि उनकी नज़रों में उन्होंने हिंसा का जवाब हिंसा से दिया। उन्होंने अपने पुरे जीवन काल में अहिंसा का दामन नहीं छोड़ा, उनके इसी निश्चय इरादों के कारण उनके साथ देश की आवाम खड़ी, जिसने गाँधी जी के स्वतंत्र भारत के स्वपन को पूरा किया।
गाँधी जी के इसी सिधांत पर कुछ वर्षो पहले एक फिल्म बनी, जिसका नाम था लगे रहो मुन्ना भाई था। विधु विनोद चौपड़ा की इस फिल्म में जो छोटे- छोटे भाग थे। उन्हें देखकर सच में यह कहा जा सकता हैं कि अहिंसा में ताकत होती हैं। मानाकि वह फिल्म हैं लेकिन असल जिन्दगी में भी अगर आप आजमा कर देखे, तो कई बाते बिना लड़ाई झगड़े के सुलझ जाती हैं, जैसे रोजाना एक व्यक्ति दुसरे के घर के सामने पान का पीप थूकता हैं, वो व्यक्ति उससे रोज लड़ता, लेकिन वो नहीं सुनता, पर जिस दिन उस व्यक्ति ने बिना लड़ाई किये, शांति से उस स्थान को साफ़ करना शुरू किया, थूकने वाले व्यक्ति को खुद ही अपने कर्मो पर शरम आ गई और उसने वो आदत सुधार ली, जो काम लड़कर नहीं हो पाया, वो शांति से हो गया।
आज के समय में हिंसा बहुत तेजी से बढ़ रही हैं। इससे किसी का फायदा नहीं हैं इसलिए जरुरी हैं कि आने वाली पीढ़ी को अहिंसा का मार्ग दिखाया जाये। इसके लिए माता-पिता, स्कूलों, शिक्षको एवम फिल्म इंडस्ट्री को जागने की जरूरत हैं क्यूंकि ये ही हैं जो आने वाली पीढ़ी को सबसे ज्यादा प्रभावित करते हैं।आज के नौजवान को अहिंसा का मार्ग दिखाना बहुत जरुरी हैं। साथ ही देशो को भी इससे सीख लेने की जरुरत हैं। हिंसा से केवल व्यक्ति का नहीं देश का भी अहित होता हैं।
आज आपसी बैर के कारण राज्यों एवम देशो की सीमाओं पर सुरक्षा की दृष्टि से जितना व्यय हो रहा हैं। अगर उतना देश के विकास में लगाये तो देश में कोई भूखा ना सोये। हिंसा की प्रवत्ति इतनी बढ़ गई हैं कि देश भोजन एवम शिक्षा के स्थान पर परमाणु को अधिक महत्व देने लगे हैं। करे भी तो क्या मुहं खोलते ही हिंसा युद्ध की बात करते हैं। ऐसे में आने वाली पीढ़ी को क्या संदेश जायेगा। ऐसा ही चलता रहा, तो एक दिन इस धरती पर मनुष्य ही मनुष्य को ख़त्म कर मानव जाति का अस्तित्व मिटा देगा।
ऐसे में अहिंसा दिवस को बड़े स्तर पर मनाया जाना चाहिये। गौरव की बात हैं कि इस दिवस के लिए हमारे देश के राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी को आधार बनाया गया।
भारत देश में जैन धर्म एवम बोध्द के प्रवर्तक महावीर भगवान बुद्ध ने सत्य एवम अहिंसा के सिधांत का महत्व सदैव सभी के सामने रखा। भगवान् बुद्ध का जीवन भी अहिंसा के पथ पर मिली शांति का एक उदाहरण हैं।
इसी प्रकार विदेशो में मार्टिन लूथर किंग, नेल्सन मंडेला आदि हैं जिन्होंने अहिंसा के मार्ग पर चलकर उदाहरण रखे।
1. क्रोध एवम घमंड के भाव ही अहिंसा के सबसे बड़े शत्रु हैं।
2. अहिंसा एक वस्त्र नहीं जिसे जब चाहा धारण कर लिया यह एक भाव हैं जो मनुष्य के ह्रदय में बसता हैं।
3. अहिंसा एक ऐसा रास्ता हैं जिसमे कदम कभी नहीं डगमगाते।
4. अहिंसा ही एक ऐसा घात हैं जो बिना रक्त बहाये गहरी चोट देता हैं।
5. युद्ध की तरफ जाना किसी समस्या का हल नहीं हैं शांति के मार्ग पर ही समस्या का समाधान मिलता हैं।
6. अहिंसा दिमागी व्यवहार नहीं अपितु मानसिक विचार हैं
7. ऐसी कोई समस्या नहीं जिसका समाधान अहिंसा के मार्ग पर नहीं मिलता।
8. आज के वक्त में अहिंसा बस किताबी पन्नो में दफ्न हो गई हैं जबकि इसकी जरुरत आज ही सबसे ज्यादा हैं।
9. ईश्वर में अविश्वास रखने वाला ही अहिंसा के विषय में सवाल करता हैं।
10. सत्य, अहिंसा का मार्ग जितना कठिन हैं उसका अन्त उतना ही सुगम और आत्मा को शांति पहुँचाने वाला हैं।
अहिंसा पर लिखे अनमोल वचन आपके सामने अहिंसा के महत्व को उजागर करते हैं। 2 अक्टूबर अन्तराष्ट्रीय अहिंसा शांति दिवस के दिन हम सभी को अपने भीतर अहिंसा के विचार का मंथन करना चाहिये ताकि हम आने वाली पीढ़ी को एक सुखद जीवन दे सके।
यदि विश्व अहिंसा ,सत्य ,ब्रह्मचर्य ,चोरी न करना और जमाखोरी (अपरिग्रह )को अपना ले तो अनेकों समस्यायों का अंत हो सकता हैं। पर हमारे जन नेताओं की कथनी और करनी में अंतर् होने से कोई भी सुखी नहीं हैं और शांति की बात करना बेमानी होगी। आज देश में बलात्कार ,हिंसा ,चोरी ,झूठ बोलना और कोरोना काल में भी जमाखोरी और अधिक दामों में सामग्री देना आज भी बरकरार हैं। ये सब बातें मन ,वचन और कर्म से होना चाहिए जो असंभव हैं।
गाँधी जयंती मनाना हैं तो मनाते हैं पर उनके आदर्शों को मानते नहीं हैं। जब तक मानेंगे नहीं तब तक इनकी कल्पना करना व्यर्थ हैं।