(यह लेख रात्रि-भोजन का समर्थक नहीं है। अपितु जैनधर्म के अनुसार रात्रि-भोजन-त्याग को परिभाषित करता है।)
अंग्रेजी की कहावत है – *Deads of Darkness are commited in the dark.* अर्थात् काले, अन्याय और अत्याचार के कार्य अंधकार में ही किये जाते है। हमारी आत्मा और शरीर दोनों का संबंध भोजन से है। शुद्ध और सात्विक भोज शुद्ध विचार उत्पन्न करता है और शीर को निरोग रखता है। अतएव हर दृष्टिकोण से रात्रि-भोजन सर्वथा त्याज्य है।
सूर्य प्रकाश की अल्ट्रावायलेट एवं इन्फ्रारेड किरणों के कारण दिन में सूक्ष्म जीवों की उत्पति नहीं होती है। सूर्यास्त होते ही जीवों की उत्पत्ति प्रारम्भ हो जाती है। रात्रि में भोजन करने और बनाने से वे सूक्षम जीव-जन्तु भोजन मे शामिल हो हमारे शरीर मे पहुँच कर हमें अस्वस्थ करते हैं।
हमारी जैविक घड़ी भी सूर्य के उदय-अस्त के अनुसार सेट की गयी है। जब सूरज हमारे बिलकुल ऊपर होता है तब हमारी जठराग्नि अपनी चरम सीमा पर होती है। सूर्य की अनुपस्थिति से पाचन प्रणाली अपेक्षाकृत क्षीण हो जाती है। रात्रि भोजन अपच और ऐसिडिटी का भी कारण बनता है।
धर्म एवं स्वास्थ्य विज्ञान सभी मानते हैं कि रात्रि में भोजन नहीं करना चाहिए। जैनधर्म रात्रि-भोजन-निषेध पर विशेष बल देता है। रात्रि भोजन क्या है और पूर्णतया रात्रि-भोजन का निषेध क्या है? इस पर अनुपालन करने वालों ने अपनी-अपनी सुविधानुसार व्याख्या कर ली है।
भोजन अर्थात वह सभी भोज्य-पदार्थ जिनका हम क्षुधा-पूर्ति के लिए सेवन करते हैं। इसमें सभी चारों प्रकार के खाद्य, पेय, लेह्य और स्वाद्य भोज्य पदार्थ आ जाते हैं। अब अगर कोई यह कहे कि वह रात्रि में अनाज के अलावा बाकी सारी चीजें खाता है तब उसका रात्रि-भोजन-त्याग नहीं मिथ्या भ्रम है। रात्रि भोजन का त्याग तो तभी है जब कि (अपद्कालीन अपवाद छोड़ कर) चारों प्रकार के खाद्य, पेय, लेह्य और स्वाद्य भोज्यपदार्थों के सेवन से विरत रहा जाये।
रात्रि को केवल औषधि रूप जल आदि ग्रहण किया जा सकता है। –चरनानुयोग
फलाहार एवं अन्य हल्की-फुल्की पदार्थ रात्रि में खाना स्वास्थ्य विज्ञान की दृष्टि से अधिक हानिकर नहीं हो सकते। लेकिन जैनधर्म की अहिंसा के परिपेक्ष्य में यह सब कुछ ग्रहण करना उतना ही दोषपूर्ण है जितना आनाज ग्रहण करना।
फलाहार इन दिनों फुल-आहार बना दिया है। –मुनि श्री प्रमाण सागर जी।
अहिंसा की दृष्टि से न केवल रात्रि भोजन ही निषेध है अपितु रात्रि में बने भोज्य -पदार्थ को दिन में खाना भी रात्रि-भोजन-त्याग का अतिचार है। रात्रि शब्द का पर्यायवाची तिमस्रा है। तम: पूर्ण होने से यह तमिस्रा कहलाती है। तम: समय में बना भोजन भी तामसी होता है। सात्विक आहार केवल सूर्य के प्रकाश में ही बनाया हुआ और ग्रहण करने से ही सुख, सत्व और बल का प्रदाता होता है। तामस भोजन सर्वथा त्याज्य है। इसलिए रात्रि के समय बनाया गया भोजन दिन में खाना भी सर्वथा तामसिक होने के कारण वर्जित है।
रात्रि में वातावरण का ताप सूक्ष्म जीवों एवं अनेक त्रस जीवों की उत्पत्ति में अनुकूलनता पैदा करता है। रात्रि में भोजन पकाते समय उसकी गंध से अनेक जीव आकर भोजन में पड़ जाते हैं। ये सभी जीव समुदाय जरा सा हवा का झोंका लगने से मर जाते हैं और उनका कलेवर भोजन में मिल जाता हैं। ऐसी स्थिति में रात्रि में बना भोजन दिन में करने वाले रात्रि-भोजन के त्यागी तो होते ही नहीं हैं वे अपने को पूर्णतया शाकाहारी भी नहीं कह सकते।