विचार

कोरोना —तेरे कितने रोना ! -डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन भोपाल

भारत वर्ष कृषिप्रधान ,श्रमिक प्रधान ,भूख प्रधान ,झूठप्रधान इत्यादि कितने प्रधान के साथ आबादी प्रधान देश हैं।यहाँ जन्म लेने वाला महान होता हैं क्योकि स्वर्ग का दूसरा नाम कश्मीर हैं और कश्मीर भारत का अभिन्न अंग हैं इसीलिए भारत स्वर्ग हैं और इसमें रहने वाले स्वर्गवासी हैं।

ऐसा सुना जाता हैं की स्वर्ग में कोई भी कष्ट नहीं होते हैं, वहां सब काम भगवान भरोसे होते हैं ,कारण भगवान कोई काम नहीं करते, वो तो सबसे कराते हैं, इसको हम दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि भगवान मैनेजर/प्रबंधक होते हैं उनका काम हैं भाषण देना, निर्देश देना और उनका कार्य पूर्ण होना।

आज्ञाफलमैश्वर्यं ।
आज्ञा प्रदान करना और उसका पूर्ण होना ऐश्वर्य का फल हैं। इसकी पुष्टि वल्ल्भदेव ने भी की हैं-
स एव प्रोच्यते राजा यस्याज्ञा सर्वतः स्थिता.अभिषेको व्रणस्यापि व्यंजनम पटट्मेव च
राजा या स्वामी या प्रधान सेवक असत्यवादी नहीं होना चाहिए

असत्यवादिनों विनश्यन्ति सर्वे गुणाः.
असत्य बोलने वाले के समस्त गुण नष्ट हो जाते हैं, इस बात कि पुष्टि रैभ्य ने भी की हैं। वैसे हमारे प्रधान सेवक निम्म गुणों के धारक हैं-

धार्मिकः कुलाचारअभिजनविशुद्धः प्रतापवान नयानुगतवृत्ति श्च स्वामी।
जो धार्मिक ,कुलीन ,सदाचारी और उत्तम कुटुंबवाला ,प्रतापशाली तथा नीति का आचरण करने वाला हो वह स्वामी  हैं।इसकी पुष्टि शुक्र ने भी की हैं।

उपरोक्त लक्षणों में कुछ लक्षण तो दिखते हैं और कुछ अदृश्य होते हैं ,धार्मिक ,कुलीन आदि तो दिखते और समझते हैं बाकी सदाचारीपन तो निजी और व्यक्तिगत होता हैं ,कारण कोई जरुरी नहीं हैं की जितना  सुन्दर फोटो हो ,उतना सुन्दर एक्स रे भी हो !.

एक बात बहुत विशेष हैं –
परममर्मस्पर्शकरम श्रद्धेयम सत्यमतिमात्रं च न भाषेत
नैतिक व्यक्ति दूसरों के हृदय को चोट पहुंचाने वाले ,विश्वास के अयोग्य और अधिक मात्रा में अर्थात ज्यादा और झूठे वचन न बोले। इसबात की पुष्टि भागुरि ने भी की हैं।

वैसे जो भी व्यक्ति देश का प्रधानसेवक ,प्रथम व्यक्ति और यहाँ तक मंत्री बनते ही वे ऐतहासिक, महान पुरुष की श्रेणी में आ जाते हैं ,और उनका प्रत्येक वाक्य ब्रह्मवाक्य माना जाता हैं।

बात इस समय कोरोना रोग के फैलने से ,और देश में लॉक डाउन लगने/लगाने से करीब १३५ करोड़ आबादी में से कुछ हजारों को जैसे मुखिया ,सचिव ,मंत्री ,मुख्य मंत्री और राज्यपालों आदि को छोड़कर पुरे देश ने इस दौरान कितनी अकल्पनीय ,अकथनीय पीड़ाएँ झेली हैं ,उन सबका अलग अलग कष्ट हैं पर कहानी भी एक हैं वह रहा दुःख ,चाहे सामाजिक ,स्वास्थ्यगत ,धार्मिक ,आर्थिक और प्रवासी मजदूरों की।दुःख और सुख के आंसू एक से होते हैं ,मात्र भावना पर निर्भर हैं।

जिनकी रोजी रोटी छिन गयी ,पैसे नहीं ,निवास नहीं ,मौलिक सुविधाएँ नहीं, ,आवागमन का साधन नहीं और उनको अपनी मातृभूमि की याद आना स्वाभाविक हैं ,जहाँ वे स्वयं अजनबी हो गए ,कारण उन्होंने अपनी आजीविका के लिए अपना घर वर्षों पहले छोड़ा ,शहर में पेट भरने झुग्गी झोपड़ियों में ,सड़क किनारे अपना जीवन यापन करते रहे ,जब स्थितियां अनुकूल न होने से मज़बूरी में पैदल ,जैसे तैसे साइकिल ,बैलगाड़ी ,वाहनों से निकल पड़े ,गर्भिणी स्त्रियों ने अपने जान की परवाह किये निकल पडी ,इस समय का मौसम हमारे कर्णधारों को घरों में पसीना आने पर व्याकुल होते हैं उन करोड़ों लोगों के प्रति हमारी लोक कल्याणकारी सरकारों ने बहुत सहयोग दिया जिससे सैकड़ों मर गए कोई भूख से ,कोई प्यास से ,बीमारी से और एक्सीडेंट से ,उनके प्रति  कोमल हृदय सरकारों का दिल बहुत बाद में पसीजा और जब गंगा का पानी बह गया तब सुधार का ध्यान आया।सरकारों के अलावा निजी संस्थाओं ने सहयोग न दिया होता तो सरकारों का आबादी नियंत्रण का  लक्ष्य पूरा हो चूका होता।

हमारे देश में आबादी नियंत्रण किया जाना अकल्पनीय हैं।कारण प्रजातंत्र में ऐसे नियम बनाना बहुत कठिन काम होता हैं ,इसीलिए सरकार इस विषय में बिलकुल न सोचे और समय बर्बाद न  करे।हां आबादी नियंत्रण में महामारियां ,अव्यवस्थाएं, झूठे आश्वाशन बहुत काम के होते हैं।और जैसा ऊपर बताया गया हैं की कोरोना के पहले हमारे देश में न पी पी ई किट और मास्क भी नहीं बनते थे पर हम उनका निर्यात जरूर करते रहे हैं ! यह राजा का झूठ बोलना नहीं कहलाता हैं ! यह सच्चाई कहलाती हैं।क्योकि राजा कभी झूठ नहीं बोलते।

हां देश में वेंट्रीलातर बहुत कम थे यह बिलकुल सच हैं ,निर्माण चालू किया गया ,बुलाये भी जा रहे हैं पर इनको लगाने में कितने लोग सक्षम हैं ,कही कही इनके गलत इस्तेमाल से भी मौते हुई हैं।जाँच किट दोयम दर्ज़े की और अधिक लागत की खरीदी गयी और उनसे की गई जाँच कितनी सच होती होगी यह शासन का विषय हैं।

लॉक डाउन ने बावजूद इलाज़ बढ़ता गया और रोगी आते गए ,जन सहयोग ,शासन के निर्देशों से बहुत हद तक रोग का नियंतरण हुआ और यह कदम स्वागतेय हैं ,जनता द्वारा मृत्यु के भय से जन सहयोग दिया।इस दौरान पूरा देश ठहर गया।अर्थव्यवस्था महत्वहीन हो गयी।जान हैं तो जहान हैं।इस दौरान कोई भूख से नहीं मरा,इससे सरकार का मनोबल बढ़ा।उसके बाद अप्रत्यक्ष्य दबाव और आर्थिक स्थिति डगमगाने के कारण शराब की दुकाने खोलकर जनकल्याण का कार्य किया जिससे ठहरा हुआ आर्थिक पहिया कुछ लुढ़का।इसने हमारे पूरे किये कराये पर पानी फेर दिया।

जिस प्रकार कोई सन्यासी तपकर कुछ सिद्धि पाने वाला हो और दानवों के द्वारा उसकी तपस्या में विघ्न पैदा कर दे वैसा ही हुआ।

इसके बाबजूद हम आत्मनिर्भर हैं ,अब कल की चिंता करना छोड़ देना चाहिए ,खाओ पियो मौज करो  थोड़ा हैं थोड़े की जरुरत हैं।

करोना के दौरान बहुत लोगों ने बहुत ही अनुकरणीय कार्य किया पर उससे अधिक करोड़ों लोगों को सडकों पर उतरना पड़ा और हर एक की अपनी अपनी पीड़ाएँ जिसका वर्णन किया जाना संभव नहीं हैं।

अब घोषणाओं का दौर चल रहा हैं ,हम चाहते है सब सुखी रहे स्वस्थ्य रहे  स्वर्ग में जरूर रहे पर स्वर्गवासी न हो पाए।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *