हटा दमोह: स्वाध्याय से ही इंसान को मार्गदर्शन, भविष्य का रास्ता, दिशा दिग्दर्शन मिलता है। स्वाध्याय ही हमें बताता है कि हमारे कार्य क्या कैसे हो, किस मार्ग पर हम चले। नहाने से हम केवल तन को धो सकते है, तन का मैल साफ कर सकते है, यदि आत्मा को पवित्र व परमात्मा बनाना है तो कर्म धूल को धोना होगा। कर्म धूल को धोकर ही सारे तीर्थंकर व भगवान बने है। कर्मो की शुद्वता के लिए मंदिर जी में जाना होगा यह बात आज श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन बडा मंदिर में वैज्ञानिक संत आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज ने अपने मंगल प्रवचन में कही।
उन्होने सकल समाज से कहा कि दर्पण में देखकर अपने चहरे पर लगे दाग को साफ कर सकते हो, अपने आपको अंदर तक झांकना है तो मंदिर जी में जाकर भगवान की प्रतिमा को देखो। प्रतिमा को देखकर स्वयं के आचरण का आंकलन करो और समझो तो निःसंदेह मन के साथ आत्मा का भी उजियारा हो जायेगा। आचार्य श्री ने कहा कि जैसा उद्देश्य होता उसे वैसा ही फल मिलता है, हाथ में जब चाकू मारने के लिए उठाया जाता है तो उसे पाप फल मिलता है, वही जब कोई चाकू आपरेशन के लिए उठाया जाता है तो उसे पुण्यफल मिलता है। उन्होने कहा कि मानव जिस स्थान पर रह रहा है वह घर को सजाने संवारे में दिन रात लगा रहता है। वह घर घर नहीं बल्कि मरघट है जहां से प्राणों का अंत होता है, वैराग्य ही एक ऐसा मार्ग है जो मरघट को भी मंदिर बना सकता है। जब साधू का घर में प्रवेश होता है आहारचर्या होती है तो वह घर भी किसी मंदिर से कम नहीं दिखाई देता है। जहां जैसा महौल होता है वहां वैसे ही विचार आते है। आचार्य श्री ने कहा कि जब बैंक का गवर्नर कागज पर हस्ताक्षर करता तो कागज की कीमत धन से आंकी जाने लगती है तो जब आप तीन लोक के नाथ के दरबार में जायेगें उन्हे शीश झुकायेगे तो उनका जो आशीर्वाद मिलेगा उसका क्या आंकलन होगा सोचो।
आचार्य श्री के परमशिष्य मुनिश्री सुदत्त सागर जी महाराज ने भी अपने मंगल प्रवचन में कहा कि यदि आप मानव है तो यह जन्म आपको सहज नहीं मिल गया आपने न जाने कितनी योनि देखी होगी। जब आपके पुण्य का उदय हुआ तब आपको मानव जीवन मिला, आप अपने सौभाग्य को दुर्भाग्य में न बदले। आज आपके सामने गुरू है जो मोक्ष मार्ग का रास्ता बतला रहे है। हमारे वर्तमान कर्म ही हमारे अगले जन्म को तय करता है। वर्तमान में कोरोना ने लोगो को जीवन जीना सिखा दिया, जिस शुद्वता की बात कई वर्षो से कही जाती रही अब लोग उस मार्ग पर चल पडे है इसे पालन तुम्हे ही करना है। जो प्राकृतिक है उसे कोई रोग प्रभावित नहीं कर सकता, लेकिन बार बार खाने की संस्कृति हमें क्या सिखा रही है, न आप योगी बन पा रहे न ही रोगी, न भोगी आप एक ढोगीं बनकर जीवन जी रहे हो। संतुलित खानपान ही आचार विचार को पवित्र रखेगा।
इस धर्म सभा में सकल जैन समाज के द्वारा आचार्य श्री से पावन वर्षायोग का निवेदन किया गया एवं आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज का ५३ वां दीक्षा दिवस हटा में ही मनाये जाने के लिए श्रीफल समर्पित किया।
आचार्य संघ की आहारचर्या नगर में ही संपन्न हुई, दोपहर उपरांत आचार्य संघ का मंगल बिहार कुण्डलपुर जी की ओर हो गया।