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इतने कमजोर तो कभी न थे हम : चीन, पाकिस्तान के बाद अब तो नेपाल जैसा देश भी किसी फिल्मी गुंडे की तरह हमे आंखे दिखाकर डराने का प्रयास कर रहा है- नितिन सक्सेना

भले ही आज हमारी गिनती अग्रणी देशों में होती है, बावजूद इसके हम अपने पड़ौसियों को नहीं साध पाये फिर चाहे वह पाकिस्तान हो या चीन। अब तो उनकी देखादेखी कल का बच्चा नेपाल भी हमें आंखे दिखाने की हिमाकत कर रहा है। उसे भी अब अपने हिसाब से मानचित्र बनाने की सूझने लगी है।

जहां सीमा विवाद को लेकर चीन और भारत के बीच लद्दाख में तनाव बढ़ता जा रहा है। सूत्रों के मुताबिक लद्दाख के पैंगोंग सो झील और गलवां नदी घाटी समेत कुल तीन जगहों पर 5000 सैनिकों की तैनाती के साथ चीन ने अपना दावा किया, जिसके बाद भारत ने भी अतिरिक्त सैनिकों की तैनाती की है। सूत्र ने कहा, हमारे उपग्रह की निगरानी और खुफिया जानकारी से पता चला है कि चीन ने गलवां नदी के पास भारतीय गश्ती क्षेत्र के पास सैनिकों के लाने-ले जाने और सामानों की आपूर्ति के लिए क्षेत्र में कई सडक़ों का निर्माण किया है। वहीं, दौलत बेग ओल्डी सेक्टर में 81 ब्रिगेड के अधिकारियों और उनके चीनी समकक्षों के बीच बैठकें हो रही हैं। दोनों पक्षों के स्थानीय सैन्य कमांडरों के बीच अब तक पांच बैठक हो चुकी हैं, लेकिन अभी तक स्थिति अनसुलझी है। सूत्रों ने कहा कि चीनी सैनिकों ने एलएसी पर तीन स्थानों को पार किया है। इनमें से प्रत्येक स्थान पर लगभग 800-1000 चीनी सैनिक मौजूद हैं। सूत्रों का कहना है कि चीनी सेना ने पिछले दो सप्ताह में 100 से ज्यादा तंबू गाडक़र अपनी स्थिति को मजबूत किया है। बंकर बनाने वाली मशीनों को भी लाना चालू कर दिया है। भारतीय सेना ने भी गलवां झील और घाटी क्षेत्र, दोनों जगह पर निर्माण चालू किया है। भारतीय सेना इस क्षेत्र में बेहतर स्थिति में है।

 

हैरानी की बात यह है कि कल तक भारत के समक्ष सीधा खड़े रहने वाला नेपाल भी अब किसी फिल्मी गुंडे की तरह आंख दिखाने की फिराक में है। नेपाल ने बुधवार को लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा के क्षेत्रों को अपने क्षेत्र के हिस्से के रूप में दिखाते हुए एक नया, आधिकारिक राजनीतिक मानचित्र प्रकाशित किया, जो भारत के साथ हाल ही में भडक़े क्षेत्रीय विवाद पर अपना रुख सख्त कर रहा है।

नेपाली सरकार द्वारा एक नए राजनीतिक मानचित्र का अनावरण करने का कदम भारत द्वारा अपने दावा किए गए क्षेत्र में लिपुलेख और कालापानी क्षेत्रों सहित छह महीने पहले अपने मानचित्र को प्रकाशित करने के बाद आया था। कैलाश-मानसरोवर तीर्थयात्रा मार्ग के हिस्से के रूप में भारत के लिपुलेख में उत्तराखंड राज्य में धारचूला को जोडऩे वाली एक सडक़ का उद्घाटन करने पर दोनों पड़ोसियों के बीच तनाव और अधिक गहरा गया। नेपाल के इस कदम से भारत खुश नहीं है। नई दिल्ली ने काठमांडू की एकतरफा कार्रवाई को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह ऐतिहासिक तथ्यों और सबूतों पर आधारित नहीं है। इसने यह भी कहा कि यह अधिनियम बातचीत के माध्यम से क्षेत्रीय मुद्दे के समाधान पर द्विपक्षीय समझ के विपरीत था। साक्ष्य उपलब्ध कराए बिना, भारतीय सेनाध्यक्ष जनरल एम.एम. नरवने ने कहा कि उत्तराखंड में बनी भारतीय सडक़ के खिलाफ नेपाल का विरोध किसी और के इशारे पर हुआ था, जिसमें कहा गया था कि इस विरोध के पीछे चीन का हाथ था। सेना प्रमुख का इस तरह का असंवेदनशील बयान तनाव को और बढ़ा सकता है। वास्तव में, नेपाल के लोग भी इस मुद्दे पर चीन से खुश नहीं हैं। नेपाल के परामर्श के बिना एक त्रिकोणीय जंक्शन बिंदु पर सडक़ का निर्माण एक गंभीर मुद्दा है। अगर नेपाल ने उत्तराखंड में एक नई सडक़ बनाने में भारत का समर्थन किया तो नेपाल में कई लोग खुद को आश्चर्यचकित कर रहे हैं। यदि नहीं, तो बीजिंग इस मामले पर चुप क्यों है? नेपाल और भारत के बीच सीमा का मुद्दा नया नहीं है और 1960 के दशक के बाद से अब और फिर से सामने आया है। नेपाल-भारत सीमा को 1816 में सुगौली संधि द्वारा परिसीमित किया गया था, जिसे ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और नेपाल के राजा के बीच एंग्लो-नेपाली युद्ध के बाद हस्ताक्षरित किया गया था। सुगौली संधि में स्पष्ट कहा गया है कि लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा नेपाल के हैं।

Source – https://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/thumb/d/d9/India_Pakistan_China_Disputed_Areas_Map.png/575px-India_Pakistan_China_Disputed_Areas_Map.png

इसी तरह से पाकिस्तान हमेशा से ही अपने बाहरी उपक्रमों, चाहे वह चीन के साथ व्यापार में रहा हो, या तालिबान के साथ शांति वार्ता के लिए हुई तोडफ़ोड़ करने के लिए भारतीय बाहरी खुफिया एजेंसी, रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) को जिम्मेदार ठहराता रहा है। लेकिन 1948 से गठित इंटर सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) के गठन के बाद से ही पाकिसतान भारत में छदम युद्ध करता आ रहा है।

आईएसआई का गठन कभी ब्रिटिश भारतीय सेना में रहे लेफ्टिनेंट कर्नल शाहिद हामिद जोकि विभाजन के बाद पाक चले गये थे, द्वारा किया गया था। रिपोर्टें पाकिस्तान के उन विश्वासपात्रों के बारे में हैं, जिन्होंने अक्सर दावा किया है कि वे अपने देश में किसी भी गैर-पाकिस्तान को अनुमति नहीं देंगे। पाकिस्तान के बारे में जो रिपोर्टे आती हैं कि उसके वफादारों द्वारा यह दावा किया जाता है कि किसी भी गैर पाकिस्तानी को वहां रहने की अनुमति नहीं है। सभी गैर मुस्लिम उनके लिए शत्रु हैं। सभी गैर-मुस्लिम वासी उनके दुश्मन हैं। पाकिस्तान को एक आदर्श इस्लामिक राज्य के रूप में देखने की दृष्टि का समर्थन करने वाले उग्रवादी समूहों को मूल रूप से उन राजनीतिक नेताओं का आर्शीवाद प्राप्त है, जिन्होंने भारत के खिलाफ आतंकी संगठन को संगठित करने के लिए अपने छत्रछाया में पाला पोसा और उन्हें बार बार भारत के खिलाफ आतंकी घटनाओं को अंजाम देने के लिए उक साया। और ये संगठन बार बार भारत में आतंकी घटनाओं को समय समय पर अंजाम देकर अपने आकाओं को खुश भी करते रहे।

खूफियां एंजेसी के सूत्रों का कहना है कि भारत में जो ताजा अवैध रुप से गल्त सूचनायें व्हटसऐप या फेसबुक ग्रुप पर फैलायी जा रही हैं, उसके पीछे पाकितान के प्रधानमंत्री इमरान खान के  नेतृत्व वाली तहरीक-ए- इंसाफ द्वारा फैलायी जाती हैं। इमरान खान की अध्यक्षता वाली तहरीक-ए- इंसाफ का एक मात्र यह ही लक्ष्य है कि किसी तरह से भारत को अस्थिर किया जाये। इस बार उसने भारतीय मुस्लिमों को इस्तेमाल कर पूर्वी दिल्ली में हिंदुओं की संप्तियों को नुक्सान पहुंचाने का प्रयास किया। हिन्दू  मुस्लिम के दंगे करवाने के उसके इस प्रयास में 44 लोगों की मौत हो गई थी और कई लोग घायल भी हो गये थे। इतना ही नहीं इन दंगों में 5 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति की क्षति हो गई थी। उल्लेखनीय है कि पूर्वी दिल्ली में 24 फरवरी को शिव विहार तिराहा के पास एक दंगा हुआ था, जिसमें एक मोहम्मद शाहनवाज़ और उसके कई अन्य साथियोंं ने पथराव किया था। इन लोगों ने कई दुकानों में तोडफ़ोड़ की और उनमें भारी नुक्सान पहुंचाया था। पुलिस ने शहनवाज़ को मुख्य हमलावर के रूप में पहचाना गया और उसे गिरफ्तार कर लिया गया। पुलिस को दिए अपने कबूलनामे में उसे दोषी करार दिया और उसने यह भी खुलासा किया कि ऐसे सैकड़ों ट्वीट थे जिनसे उसे विश्वास हो गया कि सरकार राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर के नाम पर भारत से मुस्लमानों को बेदखल करने की योजना बना रही है। सूत्रों ने कहा कि इस तरह की मुहिम को अंजाम देने के लिए सोशल मीडिया पर सैकड़ों फर्जी खाते खोले गए हैं, जिनके माध्यम से  हिंदुस्तान के ही मुस्लमानों के दिलों में नफरत भरने का काम किया गया।

सीएए के खिलाफ मुस्लमानों को भडक़ाने के लिए 18 हजार से भी ज्यादा प्रचार अभियान चलाये गये। मुस्लिम महिलाओं द्वारा धरनेबाजी इस मुहिम का एक अलग ही हिस्सा था। जिनके माध्यम से यह भी प्रचार करवाया गया कि हिंदु वर्ग द्वारा एनपीए के जरिये देश के मुस्लमानों को किनारे करने की योजना बनाई जा रही है। अपनी इस योजना में योजनाकर्ताओं को काफी हद तक सफलता भी मिली। शाहीनबाग में प्रदर्शनकारियों का धरना देश के साथ साथ अंतर्राष्ट्रीय स्तर के मीडिया के लिए भी सुर्खियों में बना रहा। भारतीय पूंजी जल रही थी और उसकी आड़ में सीएए के प्रति सभी भारतीयों के असंतोष पैदा करती मारियम खान व अन्य की तस्वीर अंतरराष्ट्रीय प्रेस के लिए आक र्षक सूर्खियां बन रहीं थीं। उनके साक्षात्कार के माध्यम से बुद्धिजीवियों के समुदाय ने सीएए विरोधियों के अभियान को खूब हवा दी। जब यह सब कुछ हो रहा था,उस समय देश का खूफिया तंत्र यह पता लगाने में जुटा हुआ था कि शाहीनबाग के लिए धन का प्रायोजक कौन है। तब यह बात सामने आर्ठ कि इस सबके पीछे अरबपति  एवं तथाकथित ट्रंप विरोधी  नेता जार्ज सोरोस द्वारा चलाई जाने वाली संस्था ओपेन सोसाइटीज फांउडेशन का नाम सामने आया। जैसे ही यह बात सामने आई कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल ट्रंप भारत दौरे पर आने वाले हैं, पता चला कि तब इस संस्था सोरोस द्वारा चलाई जाने वाली संस्था ने कारवान-ए-मोहब्बत नामक एक एनजीओ व प्रदर्शनकारियों को इस मामले में गुपत रुप से फंउिंग की। बाद में इसके प्रमुख हर्ष मंउेर लोगों को उकसाने की वजह से पुलिस के शिकंजे में आ गये। 24 फरवरी को डोनाल्ड ट्रम्प के आगमन की तारीख वाले दिन दिल्ली में सीएए का विरोध कर रहे प्रदर्शनकारियों ने जमकर प्रदर्शन कर अपनी ओर से ऐसी तस्वीर पेश करने का प्रयास किया कि भारत का मुस्लिम वर्ग खतरे में है। खूफिया सूत्रों की मानें तो पुलिस ने यह महसूस किया कि तहरीक-ए-इंसाफ,ओपन सोसायटी फाउंडेशन तथा कारवान-ए- मोहब्बत तीनों संगठनों ने मिलकर एक सांझा कार्यक्रम चलाया, जिसके तहत सीएए के विरोध मे दो समुदायोंं के बीच दंगे भडक़ाने तथा आगजनी व लूटपाट जैसी घटनाओं को अंजाम दिया गया। तब देश के गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था कि दिल्ली के दंगों के लिए वकायदा योजना बनाई गई थी,मगर इसके पीदे कौन था, उन्होंने तब इस बात का खुलासा नहीं किया था। लेकिन यह योजना लगभग वैसी ही थी, जैसा कि जल्द से जल्द आतंकी घटना को अंजाम देने के लिए आतंकवादी हरकतुल मुजाहिदीन करता था। अब यह स्पष्ट किया गया है कि यह सब पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित था जिसेवहां के प्रधानमंत्री का समर्थन था। पाकिस्तान हमेशा से अपने आतंकवादी समूहों को नये नये ज्यादा ताकतवर आतंकी संगठन बनाने के लिए उकसाता रहा है। इससे उसे यह लगता है कि ऐसा करने से न केवल कश्मीर में बलिक भारत के अन्य हिससों में भी गुप्त गतिविधियों को अंजाम देने के लिए ऐसा करना  बेहतर होगा। मगर हमारे यहां साइबर पुलिस नए ट्वीट हैंडल की भी निगरानी कर रही है जो इन दिनों उभर रहे हैं। क्योंकि उन्हें संदेह है कि उनमें से कई आतंकवादी समर्थित खाते हो सकते हैं जो फिर से भारत के आर्थिक और राजनीतिक परिदृश्य पर गलत सूचना फैलाने के लिए सक्रिय होंगे।

Nitin Saxena
Nitin Saxena is a Senior Journalist who dabbled into Films and Academics before coming back to Journalim as a Columnist and Communication consultant
https://vspnews.in

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