जैसा कहा गया हैं कि दो समान विचारधारा के जहाँ मिल जाएँ वहां एकांत हैं। हम कितनी भीदुहाई दे कि हम भारतीय हैं और संस्कृति का पालन करते हैं, पर हमारा आचरण बिलकुल विपरीत हैं। हमें हिंसक प्रधान देश कहना चाहिए और भारत को गारत कहकर राम, कृष्ण, महावीर, बुद्ध आदि के नाम पुकारना बंद करना चाहिए। हम शेर के ऊपर गधे का मास्क लगाए हैं।
एक बात और हैं कि हमारे नेता और अमेरिका,चीन आदि के नेता दिन में दो हैं और रात में एक हैं। एक बात निश्चित हैं कि हम जितनी परछाई को पकड़ने का प्रयास करेंगे वह बढ़ती जाती हैं। हम जितना चीन से विरोध कर रहे हैं उतने नजदीक जा रहे हैं, प्यार में ना ना का मजा हां हां में होता हैं। चीन से व्यापारिक सम्बन्ध ख़तम करना बेमानी हैं। आयात कीअनुमति कौन देता हैं? आयात कौन करता हैं? कौन के माध्यम से देश में सामान आता हैं और कौन खरीदता हैं? देशवासी।
हम चीन को अहिंसक खाद्य सामग्री निर्यात करते हैं जैसे सूअर का मांस, आदि आदि, क्या चीन में अहिंसक खाद्य की कमी हैं. वे हिंसक को अहिंसक मानकर खाते हैं.क्या करे हमने व्यापारिक विश्व संधि की हैं तो हमारी बाध्यता हैं. अभी भारत ने १५००० करोड़ रुपये मछली उत्पादन के लिए आवंटित किये हैं और ५०० करोड़ मधुमख्खी पालन के लिए. अप्रत्यक्ष्य में हम मांस, चमड़ा, मछली, अंडा निर्यात में सबसे अग्रणी हैं।
लद्दाख में भारत और चीन के बीच जारी तनाव के बीच चीन ने भारत से सुअर या जंगली सुअर के उत्पादों पर बैन लगा दिया है। उसने इसके लिए अफ्रीकन स्वाइन फीवर को वजह बताया है।
चीन ने भारत से सुअर या जंगली सुअर से जुड़े किसी भी उत्पाद के आयात पर बैन लगाने का फैसला किया है। उसकी ओर से कहा गया है कि अफ्रीकन स्वाइन फीवर से बचने के लिए ऐसा कदम उठाया गया है।
चीन के अखबार ग्लोबल टाइम्स की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में इस महीने की शुरुआत में स्वाइन फीवर का पहला केस असम में मिला था। चीन केअफ्रीकन स्वाइन फीवर बचाव और नियंत्रण को शुरुआती नतीजे मिले हैं। मंत्रालय की ओर से कहा गया है कि साल की शुरुआत से सुअरों को इलाज की जरूरत हो गई है और इनके मरने के मामले बढ़ते जा रहे हैं।
यह बीमारी पहले चीन के लिआओनिंग प्रांत में अगस्त 2018 में पाई गई थी। इसके बाद से 2019 में पोर्क की कीमत औसतन 51.77 युआन (USD 7.10) प्रति किलो हो गई थी। चीन की ज्यादातर आबादी के लिए पोर्क अहम आहार है।
एक बात यहाँ जरूर कहना चाहूंगा कि जिस देश कि आर्थिक बुनियाद हिंसा पर आधारित होती हैं उसका भविष्य अंधकारमय होगा और उस देश में कभी भी शांति नहीं रहेगी और जिस प्रकार जीव हिंसा से मूक जानवरों कि हिंसा कि जाती हैं उनकी आत्मा अपना प्रभाव डालती हैं .यही गति रही तो देश को और भी भयानक आपदाओं -विपदाओं को झेलना पड़ेगा ,प्रधान सेवक के शाकाहारी बनने से कुछ नहीं होगा .यह एकप्रकार का ढोंग हैं ,हमारा देश दूसरे देशों के भरण पोषण के लिए करोड़ों जानवरों कि हत्या करके आर्थिक वृद्धि कर रहा हैं और हम अपने आपको शांति प्रिय अहिंसक राष्ट्र मानते हैं।
कुछ दिनों के लिए अहिंसक बनो, उससे देश को कम आर्थिक और मानसिक नुक्सान होगा। एक प्रयोग करे,चीन ने कुछ भी हो सूअर के मांस के आयात पर प्रतिबंध लगाकार उन जीवों के ऊपर उपकार किया और उनकी जान बच गयी।
एक गलत धारणा में जी रहे हैं कि दुनिया पूरी शाकाहार हो जाएँगी तो अन्न कि कमी हो जाएँगी। ईश्वर के जब चोंच दी हैं तो चना भी दिए हैं। आज जब संक्रमण /महामारी /गंभीर बीमारियां होती हैं तब उसको दाल ,रोटी ,खिचड़ी आदि क्यों दी जाती हैं या ली जाती हैं। एक बात और हैं कोई भी पूर्ण रूप से मांसाहारी नहीं हैं। मांसाहारी ३०% मांसाहार खाता हैं और शेष रोटी ,दाल चावल सब्जी सलाद खाता हैं .सिर्फ थोड़े समय के मनोरंजन और स्वाद के लिए जीव हिंसा करना उपयुक्त और उचित नहीं हैं।
एक कसाई बकरी को काटने ले जा रहा था , बकरी हंसने लगी ,तब कसाई ने पूछा क्यों हंस रही हो ,तो उसने जबाव दिया कि मैं मात्र हरी भरी घांस खाती हूँ तो मेरा ये हाल हैं और तुम मुझे खाओगे तब तुम्हारा क्या हाल होगा ?सूअर क्या खाता हैं ?यदि वे न हों तो देश का स्वच्छत्ता लक्ष्य पूरा नहीं हो सकता। उनका सफाई में बहुत बड़ा योगदान हैं ,जबकि मनुष्य तो मात्र गन्दगी बढ़ाने में निपुण हैं।हर जानवर अपने अपने धरम का पालन करते हैं पर मनुष्य एक ऐसा जानवर हैं जिसने सब जानवरों कि आदतें ले ली।
जैसा खाओगे अन्न ,वैसा होगा मन,
जैसा पियोगे पानी ,वैसी होगी वाणी।