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अच्छे शोध के लिए चिंतन के साथ प्रत्यक्ष प्रयास आवश्यक- डॉ मोहन भागवत

विविभा : 2024 के अंतर्गत युवा शोधार्थियों के महाकुम्भ व प्रदर्शनी का राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत ने किया उद्घाटन

आस्था के कुंभ को तो खूब देखा- सुना होगा ,लेकिन शोध के महाकुंभ का शुभारंभ पहली बार गुरु द्रोण की कर्म भूमि गुरुग्राम में हुआ। भारतीय शिक्षण मंडल द्वारा आयोजित त्रिदिवसीय अखिल भारतीय शोधार्थी सम्मेलन का उद्घाटन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने किया। ‘विजन फॉर विकसित भारत’ (विविभा: 2024) अखिल भारतीय शोधार्थी सम्मलेन एसजीटी विश्वविद्यालय, गुरुग्राम, हरियाणा में 15 से 17 नवंबर 2024 तक आयोजित किया जा रहा है। आज के कार्यक्रम में भारत केंद्रित शोध को प्रोत्साहित कर युवाओं में शोध कार्य के प्रति जागरूकता लाने का अनूठा प्रयास किया गया ।

अच्छे शोध के लिए चिंतन के साथ प्रत्यक्ष प्रयास आवश्यक- डॉ मोहन भागवत

विविभा :2024 के उद्घाटन के दौरान आरएसएस के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने भारतीय शिक्षण मंडल की शोध पत्रिका ‘प्रज्ञानम’ का लोकार्पण किया। उन्होंने कहा कि दृष्टि की समग्रता ही भारत की विशेषता है। हर भारतवासी को अपना भारत, विकसित भारत, समर्थ भारत चाहिए। विकास के अनेक प्रयोग 2000 वर्षो में हो चुके हैं। उनकी अपूर्णताएं लोगों के ध्यान में आयीं। विश्व इन विफलताओं के समाधान के लिए भारत की ओर देख रहा है। विकास करें या पर्यावरण की रक्षा करे, दोनों में से एक को चुना जा सकता है। दोनों को साथ लेकर चलेंगे, तभी बचेंगे। विकास और पर्यावरण दोनों को एक साथ लेकर चलना ही पड़ेगा।

16वीं सदी तक सभी क्षेत्रों में भारत दुनिया का अग्रणी देश था। बहुत सी बातें हमने खोज ली थी ,हम रुक गए, इसीलिए पतन हो गया। भारत में 10000 वर्षों से खेती हो रही है, अन्न-जल-वायु के विषाक्त होने की समस्या कभी नहीं आई। पाश्चात्य अन्धानुकरण के कारण यह समस्या आई है। विकास एकाकी हो गया है, जबकि इसे समग्रता से देखा जाना चाहिए। मनुष्य जीवन का स्वामी है, पर दास बन बैठा है। जीवन चलाने में जीवन खो बैठा है। विकास केवल अर्थ काम की प्राप्ति नहीं है। उसका विरोध नहीं है।अपितु आत्मिक और भौतिक समृद्धि दोनों विकास एक साथ चलने चाहिए। हमारी प्रकृति ऐसी है कि हम पेटेंट पर विश्वास नहीं करते। ज्ञान सबको मिलना चाहिए परन्तु उस ज्ञान का प्रयोग विवेक से करें।

तकनीक आनी चाहिए, लेकिन निर्ममता नहीं होनी चाहिए। हर हाथ को काम मिले। दुनिया हमसे सीखे कि ये सारी बातें साथ लेकर कैसे चलते हैं। अनुकरण करने लायक चीजें ही लें, लेकिन अन्धानुकरण नहीं करना चाहिए।

व्यवस्था बंधन नहीं होना चाहिए। व्यवस्था ज्ञान को बढ़ाने का साधन होना चाहिए। पढ़ाई खत्म होने के बाद भी सीखते रहना चाहिए। सीखते-सीखते व्यक्ति बुद्ध बन जाता है। हम किसी की नकल नहीं करेंगे। हमें खुद के ही प्रतिमान खुद खड़े करने होंगे। अगर आज से ही हम इसमें लग गए तो आगामी 20 वर्षों में विजन-2047 का भारत का सपना साकार होते हुए मैं देख रहा हूँ।

विकसित भारत २०४७ की संकल्पना को मूर्त रूप प्रदान करने में युवा शोधार्थियों की महत्वपूर्ण भूमिका – डॉ एस सोमनाथ

इसरो के अध्यक्ष डॉ एस सोमनाथ ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विकसित भारत की संकल्पना को साकार करने का यही सही समय है। उन्होंने मिशन चंद्रयान की सफलता का उल्लेख करते हुए कहा कि हमारा लक्ष्य 2040 तक चंद्रमा पर मानव भेजना और अपना स्पेस स्टेशन तैयार करना है। उन्होंने कहा की भारत की विश्वगुरु की संकल्पना को साकार करते हुए हमें ऐसा भारत बनाना है ताकि लोग यहां पर प्रसन्नता पूर्वक रहें।

जब हम विकसित भारत के संकल्प के साथ यहाँ बैठे हैं तो मैं कहना चाहता हू कि यह महायज्ञ की शुरुवात है- डॉ कैलाश सत्यार्थी

नोबेल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने आयोजन की मुक्त कंठ से प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि ऐसा पहली बार हुआ है कि लगभग 2 लाख प्रतिभागियों में से चुने हुए 1200 शोधार्थी एक साथ एक छत के नीचे बैठे हैं। आज जिस महायज्ञ की शुरुआत हो रही है इसका सन्देश पूरी दुनिया को आलोकित करेगा। भारतीय परंपरा की जड़ें बहुत गहरी हैं। जो कुछ भी आप जीवन में हासिल करते हैं उसे कितना गुना करके दुनिया को वापस लौटाते हैं, उससे जो आनंद प्राप्त होता है वही भारतीय परंपरा है। हम समावेशी विकास के साथ आगे बढ़ते हैं। विकास की परिभाषा और अवमानना हमारी अपनी है। भारत को किसी की नकल की करने और किसी के आगे हाथ फैलाने की जरूरत नहीं है। हमारे ऋषियों ने यह हमें सिखाया है। तेरे-मेरे का भाव समाप्त करें तभी वसुधैव कुटुम्बकम की भावना साकार होगी।

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